धर्म डेस्क, इंदौर (Bach Baras Vrat 2024)। आज बछ बारस पर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व को गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। बछ बारस पर गाय के बछड़े के पूजन का विधान है। महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है। मान्यता के अनुसार, बछ बारस का व्रत रखने के साथ इसकी कथा सुनने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में साहूकार रहता था। उसके 7 बेटे थे। एक बार साहूकार ने तालाब की खुदाई करवाई थी, लेकिन 12 वर्ष बीतने के बाद भी तालाब नहीं भर सका। परेशान होकर साहूकार विद्वानों के पास पहुंचे और तालाब न भरने का कारण पूछा।
विद्वानों ने साहूकार को तालाब भरने का तरीका बताते हुए कहा कि उसे उसके सबसे बड़े बेटे या सबसे बड़े पोते की बलि देने के लिए कहा। इसके बार साहूकार घर पहुंचा और अपनी बड़ी बहू को उसके मायके भेज दिया। बहू के जाने के बाद साहूकार ने अपने बड़े बेटे की बलि दे दी। इसके बाद तेज बारिश हुई, जिससे पूरा तालाब भर गया।
तालाब भरने के बाद द्वादशी (बारस) तिथि पर साहूकार अपने परिवार के साथ उसकी पूजा करने पहुंचा। घर से निकलने से पहले साहूकार ने दासी से गेहुला यानी गेहूं के धान पकाने के लिए कहा। लेकिन दासी यह समझ नहीं पाई। साहूकार के घर में गेहुला नाम का एक बछड़ा भी था, ऐसे में दासी ने बछड़े को ही पका दिया।
साहूकार जब तालाब पर परिवार के साथ पूजा करने पहुंचा था, उसके साथ बड़ी बहू भी आई थी। तालाब के पूजन के बाद बहू अपने बच्चो से प्यार करने लगी और अपने ने बड़े बेटे के बारे में भी पूछा। इतने में उसका बड़ा बेटा, जिसकी साहूकार ने बलि दे दी थी, वह तालाब में से निकल आया। इसके बाद सास ने बहू को बेटे के बलि देने की पूरी बात बता दी।
तालाब का पूजन करने के बाद परिवार घर लौटा। इस दौरान साहूकार ने देखा कि बछड़ा नहीं था। साहूकार ने दासी से पूछा था, तो दासी ने बताया कि आपके कहने पर ही मैंने बछड़े को पका दिया था। इसके बाद साहूकार ने बछड़े को मिट्टी में दबा दिया।
शाम के समय जब गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े की तलाश करने लगी और मिट्टी हटाने में जुट गई। इसके बाद मिट्टी में से बछड़ा निकल आया। साहूकार को भी इसकी जानकारी लगी, तो वह बछड़े को देखने पहुंचा। यहां उसने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पी रहा था। इस घटना के बाद साहूकार ने यह बात पूरे गांव में फैला दी कि हर मां को बछ बारस का व्रत करना चाहिए।
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