Sawan 2022: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर बसे देवबलोदा गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां शिवलिंग खुद ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी युग में 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ। वहीं मंदिरा का निर्माण एक ही शख्स ने छमासी रात्रि में की थी। यह पूरा मंदिर एक ही पत्थर पर बना है, लेकिन इसका गुम्बद आधूरा है। मान्यता है कि यहां भक्तों की मनोकामना छह महीने में पूरी हो जाती है। आइए जानते हैं इस प्राचीन शिव मंदिर की रोचक कहानी।
इस कारण अधूरा है गुम्बद
मंदिर के पीछे की कहानी है कि वह व्यक्ति हर रात कुंड में नहाता था। उसके बाद नग्न अवस्था में मंदिर के निर्माण करता था। उस कारीगर की पत्नी भी उसके काम में मदद करती थी। जब उसका पति मंदिर निर्माण में काम करता था। वह उसके लिए खाना बनाकर लाती थी। एक दिन जब वह मंदिर का निर्माण कर रहा था। तब उसकी बहन खाना लेकर आ रही थी। जब उसने देखा कि उसकी बहन आ रही है। वह नग्न अवस्था में था, तो शर्म के कारण मंदिर प्रांगण में बने कुंड में छलांग लगा दी। उसके बाद बाद वो व्यक्ति कहां गया आज तक पता नहीं चल पाया। इस कारण मंदिर का गुम्बद अधूरा है।
मंदिर में चारों तरफ कारीगिरी
मंदिर के चारों तरफ सुंदर कारीगिरी है। यहां देवी देवताओं के प्रतिबिंब बनाए गए हैं। जिसे देखकर पता चलता है कि 12-13 शताब्दी के बीच लोग कैसे रहते थे। भगवान शिव त्रिशूल लेकर नाचते हुए, दो बैलों की लड़ाई और नृत्य करते आदि ऐसी कलाकृतियां है।
नहीं सूखता कुंड का पानी
मंदिर के अंदर एक कुंड बना है। बताया जाता है कि कुंड का पानी कभी सूखता नहीं है। पानी कहां से आता है, इसके स्त्रोत का पता नहीं है। कहते हैं कि कुंड के अंदर एक सुरंग है, जो आरंग जिले में निकलता है। हालांकि अब तक कोई वैज्ञानिक या पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले हैं। कुंड के अंदर मछलियां और कछुआ भी है।
मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा
बताया जाता है कि मंदिर में एक नाग-नागिन का जोड़ा है। कई बार लोगों ने उन्हें शिवलिंग में लिपटे हुए देखा है। नाग-नागिन से कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है। हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां मेला लगता है। इससे देवबलोदा मेला कहा जाता है।
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