Sawan 2025 Special: त्रेतायुग में राम, लक्ष्मण और हनुमान ने की थी तपस्या… आज यहां स्थित है कपितीर्थ कुम्भेश्वर महादेव मंदिर
Sawan 2025 Special: मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित इस महादेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बहुत रोचक है। जब राम-रावण युद्ध समाप्त हो गया तो रुद्रावतार हनुमान अपने मूल महादेव के लोक कैलाश पहुंचे। मुख्यद्वार पर शिववाहन नंदी ने हनुमान को रोक दिया…
Publish Date: Mon, 28 Jul 2025 02:06:12 PM (IST)
Updated Date: Mon, 28 Jul 2025 02:06:12 PM (IST)
HighLights
- एमपी के जबलपुर में नर्मदा तट पर है मंदिर
- यहीं है दुनिया का एकमात्र जुड़वा शिवलिंग
- सावन के दौरान लगता है भक्तों का मेला
सुरेन्द्र दुबे, जबलपुर, Sawan 2025 Special: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और उनके अनुज लक्ष्मण के अलावा परम रामभक्त हनुमान ने त्रेतायुग में जबलपुर के नर्मदा तट पर तपस्या की थी। इसका उल्लेख स्कंधपुराण के रेवाखंड में है। इस पौराणिक प्रमाण की पुष्टी करने वाला स्थल वर्तमान में कपितीर्थ कुम्भेश्वर महादेव, लम्हेटीघाट के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथा… हनुमान जी को नंदी ने रोक लिया था
- इस संबंध में जो आख्यान है, उसके अनुसार जब राम-रावण युद्ध समाप्त हो गया तो रुद्रावतार हनुमान अपने मूल महादेव के लोक कैलाश पहुंचे। मुख्यद्वार पर शिववाहन नंदी ने हनुमान को रोक दिया।
- हनुमानजी ने इसका कारण पूछा तो नंदी ने बताया कि आपने लंका में रावण की अशोक वाटिका उजाड़ी थी, इस वजह से आपके ऊपर प्रकृति हत्या का दोष लगा है। इसके साथ ही महापंडित रावण के वंशजों की हत्या के कारण ब्रह्महत्या का दोष भी लगा है।
इन दोनों दोषों से मुक्ति के बाद ही आप शिवलोक में प्रवेश के योग्य हो सकेंगे। जब हनुमानजी अपने ऊपर लगे दो दोषों को लेकर चिंतित मुद्रा में कैलाश के मुख्यद्वार पर बैठ गए, तब नंदी ने उन्हें उत्तरी रेवातट पर जाकर साधना करने का मार्ग सुझाया।
लिहाजा, हनुमानजी नर्मदा के उत्तरीतट लम्हेटीघाट पहुंच गए। वहां उन्होंने अनवरत तपस्या के माध्यम से शिव को प्रसन्न कर प्रकृति व ब्रह्महत्या के दोषों से निवृत्ति पा ली। तभी से लम्हेटीघाट जबलपुर में हनुमान की तपस्या स्थली को कपितीर्थ संबोधन से पुकारा जाने लगा। ![naidunia_image]()
दुनिया का एकमात्र जुड़वा शिवलिंग
कालांतर में जब हनुमान ने अपने आराध्य श्रीराम को प्रकृति व ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति के बारे में जानकारी दी, तो उन्होंने भी अपने अनुज लक्ष्मण के साथ कपितीर्थ लम्हेटीघाट पहुंचकर एक जिलहरी में शिवलिंग स्थापित किया।
इसी दौरान लक्ष्मण ने पहले शिवलिंग से थोड़ा छोटा दूसरा शिवलिंग उसी जिलहरी में स्थापित कर दिया। इस तरह कपितीर्थ का दूसरा नामकरण कुम्भेश्वर महादेव प्रसिद्घ हो गया। यह शिवलिंग पृथ्वी का एकमात्र जुड़वा शिवलिंग माना जाता है।
नर्मदा विश्व की एकमात्र सरिता हैं, जो कि पश्चिमोन्मुखी प्रवाहित हैं। प्रायः अन्य सरिता पश्चिम से पूर्व की ओर अर्थात ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहमान हैं, किन्तु एकमात्र नर्मदा नीचे से ऊपर की तरफ प्रवाह के माध्यम से ऊर्ध्वमुखी होने का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
जबलपुर के लम्हेटीघाट स्थित नीलगिरी शिलाखंड से लेकर भेड़ाघाट तक डेढ़ किलोमीटर के दायरे में उत्तराभिमुख अपवादिक प्रवाह धारण कर लिया। इसी वजह से इस स्थान के उत्तर व दक्षिण तट पर साधना का फल दूसरे तटों की अपेक्षा कई गुना हो जाता है। यही वजह है कि नंदी ने हनुमान को तपस्या के लिए उचित जगह सुझाई।