नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। विवाह के लिए शुभ घड़ी का इंतजार कर रहे युगलों के लिए मई-जून के विराम के बाद जुलाई चुनिंदा मुहूर्त है। जुलाई के 15 दिन में विवाह के पांच शुभ मुहूर्त है। इसके बाद 17 जुलाई से देशवशयनी एकादशी से चातुर्मास लगने के चलते वैवाहिक आयोजन के लिए चार माह का विराम लगेगा।
इस दौरान तीज-त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान का उल्लास छाएगा। 118 दिनी चातुर्मास का समापन देवप्रबोधिनी एकादशी पर 12 जुलाई को होगा। इसके बाद नवंबर 8 और दिसंबर 6 मुहूर्त है। ज्योतिर्विद् कान्हा जोशी के अनुसार दांपत्य जीवन के लिए आवश्यक सुख-सौभाग्य और सौंदर्य देने वाले गुरु और शुक्र का तारा अस्त होने से मई-जून में विवाह के शुद्ध मुहूर्त नहीं थे। इसके चलते अक्षय तृतीया पर भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त होने के बावजूद सीमित संख्या में वैवाहिक आयोजन हुए।
28 अप्रैल को अस्त हुआ शुक्र का तारे का उदय 5 जुलाई को होगा। हालांकि अब 2 जून को गुरु का तारा उदय हो गया है। इन दोनों ग्रह का विशेष महत्व विवाह के लिए बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में शुक्र व्यक्ति के सौंदर्य सहित अन्य शारीरिक और भौतिक सुख को प्रदान करने वाला बताया गया है। इसके अतिरिक्त बृहस्पति जीवन में नैतिकता, समृद्धि , संस्कार और धर्म का कारक है।
9 जुलाई से एक बार फिर वैवाहिक आयोजन शुरू होंगे। विवाह 9,11,12,13 और 15 जुलाई को किए जा सकेंगे। इसके बाद 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास लगने से विवाह नहीं होंगे। इसके बाद एक बार फिर चार माह के लिए वैवाहिक आयोजन पर रोक लग जाएगी नवंबर में 12,13,16,17,18,22,23, और 25 नवंबर को मुहूर्त है। वर्ष के आखरी महीने दिसंबर में विवाह के 6 मुहूर्त 4,5,9,10,14 और 15 दिसंबर को रहेंगे।
शिवम तिवारी कहते है कि ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास में विवाह से देवों का आशीष नहीं मिलता है। यह उनका शयन का समय होता है। भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, इसलिए वे मांगलिक कार्य में उपस्थित नहीं होते हैं।
इस समय साधु-संत विहार न करते हुए एक स्थान पर आकर रुकते हैं। यह समय संतों की सेवा के साथ तीर्थाटन और ध्यान-पूजन के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस दौरान वर्ष के प्रमुख त्योहार भी मनाए जाते हैं।
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