धर्म डेस्क, इंदौर: हिंदू धर्म में अश्विन मास के पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर देवी लक्ष्मी और चांद की पूजा की जाती है। साथ ही रात के समय खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है और सुबह उसे खाता जाता है। शरद पूर्णिमा को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं, जिससे इस पूर्निमा की रात के महत्व का पता चलता है।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति जिस तिथि को हुई थी, वह शरद पूर्णिमा की थी। इसीलिए इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके लिए श्रद्धालू वर्त रखते हैं और रात के समय चांद की पूजा भी की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का चांद सबसे अधिक चमकिला होता है। इस रात चांद से निकलने वाली किरणों में अमृत के गुण होते हैं। इसीलिए प्राचीन पौराणिक मान्यता के अनुसार रात के समय खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है और सुबह प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण किया जाता है। चांद की किरणों से इस खीर में सकारात्म ऊर्जा आती है।
पंचांग के अनुसार, इस साल पूर्णिमा कि तिथि सोमवार 06 अक्टूबर को है। तिथि दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर अगले दिन मंगलवार सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। सोमवार रात को चंद्रोदय के बाद लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना की जाएगी। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी की पूजा करने से धन की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा को विधिवत मां लक्ष्मी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय राशि अनुसार इन मंत्रों का जाप करें।
यह भी पढ़ें- Sharad Purnima 2025 पर इन राशियों की खुलेगी किस्मत, 06 अक्टूबर पूर्णिमा की रात लाएगी खुशहाली
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। नईदुनिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। नईदुनिया अंधविश्वास के खिलाफ है।