धर्म डेस्क, इंदौर। Shardiya Navratri 2024 Date: सनातन धर्म में त्योहारों का विशेष महत्व है। नवरात्रि का पर्व भी खास अवसरों में से एक है। नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। साल में चार बार नवरात्रि का पावन त्योहार आता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि आती है। हालांकि सबसे ज्यादा महत्व शारदीय नवरात्रि का है।
पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि का त्योहार हर साल अश्विनी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। नवरात्रि के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है। इस साल शारदीय नवरात्रि का त्योहार 3 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। घर की अच्छे से साफ-सफाई करें। मुख्य द्वार की चौखट पर आम के पत्तों का तोरण लगाएं। पूजा के स्थान को गंगाजल से पवित्र करें। अब चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में कलश की स्थापना करें।
कलश स्थापना के लिए एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं। तांबे के कलश में शुद्ध पानी और गंगाजल डालें। कलश पर कलावा बांधें। इसके बाद उसमें दूर्वा, अक्षत और सुपारी भी डालें। फिर कलश पर चुनरी मौली बांध कर एक सूखा नारियल रखें। विधि-विधान से माता की पूजन करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। आखिरी में आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
नवरात्रि में मां शक्ति के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। पूजा सामग्री में कुमकुम, पुष्प, देवी की मूर्ति या फोटो, जल से भरा कलश, मिट्टी के बर्तन, जौ, लाल चुनरी, लाल वस्त्र, नारियल, अक्षत, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मिसरी, कपूर, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी, फल, मिठाई और कलावा।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुख हरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिंहु लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटी विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना।।
अन्नपूर्णा हुई जगपाला। तुम ही आदि सुंदरी बाला।।
प्रलयकाव सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।।
शिव योगी तुम्हारे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरयो रूप नरसिंह को अंबा। परगट भई फाड़ कर खंबा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो। हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माही। श्री नारायण अंग समाहीं।।
क्षीरसिंधु मे करत विलासा। दयासिंधु दीजै मन आसा।।
हिंगलाज मे तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी। क्षिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।।
केहरि वाहन सोहे भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर मे खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै।।
सोहे अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगर कोटि मे तुमही विराजत। तिहुं लोक में डंका बाजत।।
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अधिभार मही अकुलानी।।
रूप कराल काली को धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
परी गाढ़ संतन पर जब-जब। भई सहाय मात तुम तब-तब।।
अमरपुरी औरों सब लोका। जब महिमा सब रहे अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हे सदा पूजें नर नारी।।
प्रेम भक्त से जो जस गावैं। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै।।
ध्यावें जो नर मन लाई। जन्म मरण ताको छुटि जाई।।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग नही बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचारज तप कीन्हों। काम क्रोध जीति सब लीनों।।
निसदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो ।शक्ति गई तब मन पछितायो।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहि कीन्ह विलंबा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरों। तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ।।
आशा तृष्णा निपट सतावै। रिपु मूरख मोहि अति डरपावै ।।
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी ।।
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला।।
जब लगि जियौं दया फल पाऊं। तुम्हरौ जस मै सदा सुनाऊं।।
दुर्गा चालीसा जो गावै। सब सुख भोग परम पद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
शरणागत रक्षा कर, भक्त रहे निःशंक। मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक।।
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