ऋग्वेद में है उल्लेखित, 'नहीं देना चाहिए पशु बलि'
वेदों में किसी भी प्रकार तरह की बलि प्रथा की इजाजत नहीं दी गई है।
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Publish Date: Sat, 03 Dec 2016 02:46:22 PM (IST)
Updated Date: Mon, 05 Dec 2016 05:29:15 PM (IST)

हाल ही में पतंजलि फेम योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा था कि, 'नेपाल में बलि प्रथा बंद होनी चाहिए। धर्म बलि प्रथा की अनुमति नहीं देता है।' रामदेव का ये कहना सच है कि बलि प्रथा बंद होनी चाहिए। बलि प्रथा अंधविश्वास है।
उन्होंने इसका संदर्भ देते हुए कहा था कि ऐतिहासिक गढ़ीमाई मेला पांच वर्ष में एक बार लगता है, जहां करीब डेढ़ लाख पशुओं की बलि होती है। पक्षियों की गिनती संभव नहीं है। वह बलि रोकने के लिए मंदिर के पुजारी व प्रबुद्धजनों से बातचीत करेंगे। जरूरत पड़ी तो धरना भी देंगे।'
दरअसल पशु बलि प्रथा का उल्लेख हमारे ग्रंथों में मिलता है। लेकिन ये ग्रंथ जब लिखे गए उस समय के काल, समय और युग के हिसाब से वर्तमान युग पूरी तरह से बदल चुका है। ऐसे में पशु बलि प्रथा किसी भी मायने में बेहतर नहीं कही जा सकती है।
ऋग्वेद 1/114/8 में उल्लेखित है, 'मा नो गोषु मा नो अश्वेसु रीरिष:।' यानी हमारी गाय घोड़ों को मत मारो।
पौराणिक ग्रंथों के विद्वानों का मानना है, 'हिन्दू धर्म में लोक परंपरा की धाराएं भी जुड़ती गईं और उन्हें हिन्दू धर्म का हिस्सा माना जाने लगा।' बलि प्रथा का प्रचलन शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदाय में मिलता है, लेकिन इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है।