धर्म डेस्क। रविवार से पितृ पूर्णिमा के साथ 16 पक्षीय श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो रहा है। सनातन धर्म में महालय पितृ पक्ष का विशेष महत्व बताया है। मान्यता है कि इस अवधि में तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। उनको मोक्ष प्राप्त होता है। उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। इस काल को लेकर समाज में कई भ्रांतियां हैं, जिन्हें जानना और सुधारना जरूरी है।
ज्योतिषाचार्य पं. अजय पंड्या के अनुसार कई लोग अपने परिजन की मृत्यु के बाद पहले ही साल में श्राद्ध कर देते हैं, जबकि कुछ इसे टालते-टालते कभी नहीं करते। कुछ परिवार तीसरे वर्ष में मृत्यु तिथि को छोड़कर पूर्णिमा के दिन श्राद्ध करते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह परंपरा शास्त्रोक्त नहीं है। पूर्णिमा पर श्राद्ध करना या तीसरे वर्ष तक इसे टालना गलत माना है।
पं. पंड्या का कहना है कि पितृ पक्ष हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। इस अवधि में जिस तिथि पर परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी दिन श्राद्ध करने का विधान है। यही शास्त्रोक्त और मान्य मार्ग है।
श्राद्ध केवल पितरों को संतुष्ट करने के लिए नहीं होता है। इससे सम्पूर्ण जीव-जगत को संतृप्ति मिलती है। मान्यता है कि विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध से ब्रह्मा से लेकर घास तक सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं। इसी कारण इसे पारिवारिक कर्तव्य के साथ-साथ धार्मिक दायित्व भी माना है।
पं. पंड्या ने चेताया कि श्राद्ध का आरंभ पूर्णिमा तिथि से करना पूरी तरह गलत है। यह कार्य केवल मृतक की तिथि या पितृ पक्ष की संबंधित तिथि पर ही करना चाहिए। इस दौरान इसका फल उचित रूप से प्राप्त होगा और पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।