'गया' में सीता जी ने इस राजा का किया था पिंडदान
उसे लंबी आयु मिलेगी और पतिव्रता स्त्री वटवृक्ष की पूजा करेंगी।
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Publish Date: Sat, 17 Sep 2016 02:13:05 PM (IST)
Updated Date: Mon, 19 Sep 2016 10:05:24 AM (IST)

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है। यह कथा श्राद्ध पक्ष से संबंधित है। इस कथा में सीताजी द्वारा दशरथ जी के पिंडदान की महिमा बताई गई है।
बात उस समय की है जब वनवास के दौरान ही प्रभु राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए 'गया' गए हुए थे। तब प्रभु राम अनुज लक्ष्मण के साथ पिंड दान करने के लिए साम्रगी लेने चले गए।
उधर, पिंडदान करने का मुहूर्त बीता जा रहा था। और प्रभु राम और लक्ष्मण नहीं आए। सीता जी उनकी प्रतिक्षा कर रहीं थीं। तब स्वयं राजा दशरथ की आत्मा ने प्रकट होकर सीता जी से कहा, 'पुत्री पिंडदान का समय बीता जा रहा है। अब तुमको ही पिंड दान करना होगा।'
तब सीता जी ने फल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर नदी की बालू का पिंड बनाया। और फिर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया। कुछ समय बाद प्रभु राम और अनुज लक्ष्मण वहां पहुंचे। तब सीता जी ने वहां पर घटित घटनाक्रम को क्रमश: बताया।
जब श्रीराम ने सीता जी से इस बात का प्रमाण मांगा। तब सीता जी ने फल्गू नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष से उनके द्वारा पिंडदान की गवाही देने के लिए कहा।
हुआ कुछ यूं कि फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। लेकिन वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने राजा दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।
दशरथ जी की आत्मा आई और उन्होंने श्रीराम से कहा, 'पुत्र राम, पुत्री सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया है।' तब सीता जी ने झूठ बोलने के कारण उन तीनों को शाप दिया। फल्गू नदी को श्राप दिया कि उसमें कभी पानी नहीं रहेगा। गाय को श्राप दिया कि पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को शाप दिया कि पूजा में कभी यह फूल अर्पित नहीं किया जाएगा।
वहीं वटटवृक्ष को सीता जी का आशीर्वाद दिया कि, उसे लंबी आयु मिलेगी और पतिव्रता स्त्री वटवृक्ष की पूजा करेंगी।