
धर्म डेस्क। आज के समय में लोग सुविधा के हिसाब से कभी भी बाल धो लेते हैं, लेकिन पुराने जमाने में दादी-नानी कुछ खास दिनों और समय पर बाल धोने से सख्त मना करती थीं। अक्सर इसे अंधविश्वास समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि इसके पीछे प्राचीन सभ्यताओं की गहरी सोच और जीवन विज्ञान छिपा हुआ था।
मिस्र से लेकर भारत तक, बाल धोना केवल स्वच्छता से जुड़ा काम नहीं था, बल्कि इसे एक आध्यात्मिक और प्राकृतिक प्रक्रिया माना जाता था। आइए जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने बाल धोने के लिए इतने नियम क्यों बनाए थे।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बाल केवल सुंदरता का हिस्सा नहीं थे, बल्कि उन्हें ब्रह्मांडीय ऊर्जा को ग्रहण करने वाला एंटेना माना जाता था। ऐसा विश्वास था कि व्यक्ति की स्मृतियां और संस्कार बालों में संचित रहते हैं। इसलिए बार-बार बाल धोने से मानसिक ऊर्जा और स्मरण शक्ति पर असर पड़ सकता है।
पुरानी चिकित्सा पद्धतियों के अनुसार सिर शरीर का सबसे संवेदनशील अंग है। बाल धोने से सिर का तापमान अचानक कम हो सकता है, जिससे शरीर की पाचन अग्नि और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है। यही वजह थी कि बीमारी, सर्दी या शाम के समय बाल धोने से परहेज किया जाता था।
पूर्वज समय और ग्रहों के प्रभाव को लेकर बेहद सजग थे। सप्ताह के अलग-अलग दिन अलग ग्रहों से जुड़े माने जाते थे। मान्यता थी कि कुछ विशेष दिनों पर बाल धोने से धन, स्वास्थ्य या बुद्धि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इन नियमों का उद्देश्य मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखना था।
धार्मिक अनुष्ठान, पूजा या किसी बड़े पर्व से पहले सिर धोना शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता था। लेकिन पूजा या संस्कार के बाद कुछ दिनों तक बाल नहीं धोए जाते थे, ताकि उस अनुष्ठान से प्राप्त सकारात्मक ऊर्जा शरीर में बनी रहे।
आज का विज्ञान भले ही इन बातों को अलग दृष्टिकोण से देखता हो, लेकिन प्राचीन नियम हमें यह सिखाते हैं कि शरीर और प्रकृति के बीच गहरा संबंध है। बाल धोना सिर्फ सफाई नहीं, बल्कि ऊर्जा, स्वास्थ्य और संतुलन से भी जुड़ा हुआ माना जाता था।
नोट - यह जानकारी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित है। नईदुनिया इसकी वैज्ञानिक पुष्टि नहीं करता। किसी भी नियम को अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।