- देवदत्त पटनायक
सीता ने हनुमान को कदली-वन भेजा, क्योंकि वे हनुमान को अयोध्या से बाहर भेजना चाहती थीं ताकि उन्हें राम के साथ एकांत मिल सके।
शायद केले के वन का चयन इसलिए किया गया क्योंकि इसका फल स्त्रियों की इच्छाओं पर ताना कसता रहेगा जो किसी पुरुष के साथ को तरसेगी।
भारतीय लोककथाओं में, कदली-वन या केले के उपवन का कई बार संदर्भ मिलता है, ऐसी जगह जो केले का उपवन है। कोई भी नहीं जानता कि यह कदली वन कहां है। कोई कहता है कि यह दक्षिण के जंगलों के बीचोंबीच है। कुछ अन्य कहते हैं कि यह हिमालय की घाटियों में हो मिल सकती है।
फिर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि यह सिर्फ कवियों और साधुओं की कल्पनाओं में ही मौजूद है। यह बहुत महत्वपूर्ण क्यों है? क्योंकि यह एक ऐसी जगह है जो सिर्फ महिलाओं के लिए ही है, ऐसी जगह जहां पुरुष प्रवेश नहीं कर सकते।
इसकी कथा इस प्रकार है कि एक बार एक राजकुमारी थी (जिसे कहीं प्रमिला कहा गया है तो कहीं कमला), जिसने एक दिन सिर के ऊपर से गंधर्व को उड़कर जाते हुए देखा। राजकुमारी का ध्यान उसके जननांगों की ओर गया और उसकी हंसी छूट गई।
गंधर्व ने तब उसे शाप दिया कि वह और महल की अन्य युवतियां जो इस मजाक में उसके साथ शामिल थीं वे एक ऐसे उपवन में कैद हो जाएंगी जहां कोई भी पुरुष प्रवेश नहीं कर सकेगा। यह कदली वन था। लेकिन केले का वन ही क्यों?
कोई कह सकता है कि शायद केले के वन का चयन इसलिए किया गया क्योंकि इसका फल उनकी इच्छाओं का पर तंज कसता रहेगा जो कि किसी पुरुष के साथ को तरसेगी। कोई कहता है कि यह स्त्रियों की जंघा का एक रूपक है जिसकी तुलना संस्कृत साहित्य में कई बार केले के वृक्ष के तने से की गई है।
इसके अलावा चूंकि कहा जाता है कि केला खुद-ब-खुद उगने वाला वृक्ष है और उसे लंबे समय तक देवी मां के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है। उस देवी मां के साथ जिसने पार्वती के रूप में विनायक की रचना विना (बिना) नायक (पुरुष) के की।
नाथ संप्रदाय की लोककथाओं में कहा जाता है कि मत्स्येंद्रनाथ कदली-वन में फंस गए थे। कदली वन यहां सांसारिक आकर्षणों का रूपक था। मत्स्येंद्रनाथ को उनके योग्य शिष्य गोरखनाथ ने छुड़ाया। मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ इस मंत्रमुग्ध करने वाले वन में प्रवेश कर सकते थे क्योंकि उनके पास सिद्ध जादुई शक्तियां थीं जो उन्होंने ब्रह्मचर्य से अर्जित की थी।
लेकिन जब मत्स्येंद्रनाथ इस वन में प्रविष्ठ हुए वे बाहर नहीं आ सके। गोरखनाथ को जाकर उन्हें बाहर निकालना पड़ा। एक अन्य परंपरा में हनुमान का निवास स्थान कदली-वन बताया जाता है। कथा इस तरह है कि स्त्री-राज्य (कदली वन का एक नाम यह भी मिलता है) की हताश युवतियों ने मां देवी से संतान प्राप्ति की याचना की। तब सीता ने हनुमान को कदली-वन भेजा।
उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे हनुमान को अयोध्या से बाहर भेजना चाहती थीं ताकि उन्हें राम के साथ एकांत मिल सके। सीता ने हनुमान को आदेश दिया कि तब तक वापस न लौटना जब तक कि उन स्त्रियों को संतान प्राप्ति नहीं हो जाती। ब्रह्मचर्य पालन का व्रत ले चुके हनुमान को पता नहीं था कि क्या करें।
वे केले के उपवन में प्रविष्ठ हुए और उन्होंने जोर-जोर से राम की स्तुति शुरू कर दी। सबका ध्यान आवाज की ओर गया। आवाज में इतना प्रभाव था कि कदली-वन के भीतर की स्त्रियां उसे सुनकर ही गर्भवती हो गईं। लेकिन मातृत्व से ही स्त्रियों को संतुष्टि नहीं मिलती है।
अंतरंगता भी उनकी चाह होती है। और तब हनुमान ने उनसे वादा किया कि वह किसी उपयुक्त पुरुष को उनके पास भेजेंगे। मत्स्येंद्रनाथ ही वह पुरुष थे।
लोक महाभारत में जब पांडवों का घोड़ा कदली वन में प्रवेश करता है तो वह घोड़ी में बदल जाता है। अर्जुन को उसे वापस लाने के लिए भेजा जाता है लेकिन प्रमिला/कमला उसे लौटाने से मना करते हुए अर्जुन से विवाह का प्रस्ताव रखती है। अर्जुन प्रस्ताव स्वीकार करता है और बदले में पांडवों को उनका अश्व पुन: प्राप्त हो जाता है।
सौजन्यः मिड-डे