महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण 36 वर्ष तक द्वारका में राज्य करते रहे। उनके सुशासन में समानवंशी भोज, वृष्णि, अंधक आदि यादव राजकुमार असीम सुख भोग रहे थे।
अधिक भोग-विलास के कारण उनका संयम और शील जाता रहा। इन्हीं दिनों कुछ तपस्वी ऋषि -मुनि द्वारका पधारे। अपनी मस्ती में मस्त यादवगण उन महात्माओं का मजाक उड़ाने के लिए साम्ब नाम के राजकुमार को स्त्री की पोशाक पहनाकर ऋषियों के सामने ले गए और उनसे पूछा, आप लोग शास्त्रों के ज्ञाता हैं।अच्छा ये बताइए कि इस स्त्री के पुत्र होगा या पुत्री?
यादवों के इस झूठ और नटखटपन से ऋषियों को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि इस स्त्री को एक मूसल होगा, वही तुम्हारे कुल का नाश करेगा। यह शाप सुनकर यादवगण चौंक गए।
समय आने पर ऋषियों के कहे अनुसार स्त्री वेषधारी साम्ब के एक मूसल पैदा हुआ। इस पर यादवों की घबराहट और बढ़ गई। वे बड़े डरे और सहमे हुए थे। आखिर सभी ने मूसल को जलाकर भस्म कर दिया और उस भस्म को समुद्र के किनारे बिखेर दिया। यादवगण यह सब कुछ करने के बाद निश्चिंत हो गए। कुछ दिनों बाद समुद्र के किनारे उसी राख से घास पैदा हुई।
इसके कई दिनों तक सभी यादव शराब के नशे में समुद्र तट की सैर करते और मदिरा पीकर नाचते गाते। एक बार (महाभारत युद्ध के समय यादव कुल का वीर कृतवर्मा कौरवों के पक्ष में लड़ा था और सात्यकि पांडवों के पक्ष में।) दो यादवों कृतवर्मा और सत्याकि शराब के नशे में आपस में बहस करने लगे।
सात्यकि , कृतवर्मा की हंसी उड़ाते हुए बोला, क्षत्रिय होकर किसी ने सोते हुए को मारा है? अरे कृतवर्मा! तुमने तो ऐसा करके सारे यादव कुल को अपमानित कर दिया। तुम्हें धिक्कार है।
सात्यकि की बात को सुनकर कृतवर्मा नाराज हो गया। वह सात्यकि से बोल कि, तुम मुझे मशवरा देने वाले कौन होते हो ? युद्धक्षेत्र में अपना हाथ कट जाने पर जब महात्मा भूरिश्रवा शर-शय्या पर प्रायोपवेशन ( एक प्रकार की योग क्रिया) कर रहे थे। तब तुमने उनकी हत्या की थी।
दोनों की इस बहस के बाद भयंकर झगड़ा शुरू हो गया। आपस में मार-काट होने लगी। इस बीच सत्याकि ने तलवार के एक वार से कृतवर्मा कासिर, शरीर से अलग कर दिया। युद्ध आपस में चलता रहा। भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र प्रद्युम सात्यकि की तरफ से उन लोगों का मुकाबला कर रहा था। थोड़ी देर बाद सात्यकि और प्रद्युम दोनों मारे गए।
यह देख श्रीकृष्ण भी क्रोध में आ गए और समुद्र-किनारे जो लंबी घास उगी हुई थी, उसी का एक गुच्छा उखाड़कर विपक्षियों पर टूट गए। फिर क्या था सभी यादवों ने एक-एक घास का गुच्छा उखाड़ लिया और उसी से एक दूसरे पर वार करने लगे।
ऋर्षियों के शाप के प्रभाव से मूसल की राख से उगे घास के पौधे यादवों के उखाड़ते ही मूसल बन गए और ये यादव उन्ही मूसलों से आघात करते हुए मारे गए। शराब के नशे में हुए इस फसाद से सारा यादव वंश नष्ट हो गया।
अपने वंश का नाश होते देखकर बलराम ने योग समाधि ले ली और श्रीकृष्ण भी एक वृक्ष के नीचे ध्यनमग्न हो गए इस बीच एक शिकारी ने उनके तलुए को हिरण समझकर तीर मारा जिसके कारण वह भी बैकुंठधाम की ओर चले गए।