इसीलिए सूरदास जी हैं हिंदी साहित्य के सूर्य
राधिका में दूसरा, ग्वालवालों में तीसरा, रुक्मिणी में चौथा। यह प्रेम प्रकृति से भी मृदु है।
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Publish Date: Tue, 10 May 2016 05:17:58 PM (IST)
Updated Date: Mon, 01 May 2017 09:43:09 AM (IST)

सूरदास जयंती 01.05.2017 विशेष...
हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। सूरदास श्रीनाथ की 'संस्कृतवार्ता मणिपाला', श्री हरिराय कृत 'भाव-प्रकाश', 'श्री गोकुलनाथ की निजवार्ता' आदि ग्रन्थों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। वैशाख शुक्ल पंचमी यानी 11 मई के दिन ही सूरदास जी का जन्म हुआ था।
सूरदास की रचनाओं की पहली विशेषता यह थी कि, सूरदास जी ने जिस प्रकार के पद लिखे हैं। वे हिंदी साहित्य में नवीन न होते हुए भी एक विशेष नवीनता रखते हैं। नाथ और सहज-पन्थ के सिद्धांतों के पुराने पद जो उपलब्ध हैं।
श्रीहरप्रसाद शास्त्री के अनुसार और बंगाली पंडितों ने सूरदास के पदों को बंगला भाषा में भी लिखा गया है उत्तर-पश्चिम भारत में कृष्ण लीला वर्णन करने के लिए सूरदास ने ही पहले-पहल प्रयोग किया। जो पद निर्गुण उपासना को वहन करते आ रहे थे, उसे सगुण रस से सरस करना सूरदास का ही काम था।
सूरदास की दूसरी विशेषता है कि उनकी बाल-लीला का वर्णन। सूरदास ने एक अलौकिक प्रेम की कल्पना की है जो मिलन में सोलह आना मिलन और वियोग में सोलह आना वियोग के रूप में देखा जाता है। यह एक ही प्रेम मां यशोदा में एक रूप धारण कर गया है।
राधिका में दूसरा, ग्वालवालों में तीसरा, रुक्मिणी में चौथा। यह प्रेम प्रकृति से भी मृदु है। सूरदास के गुरु वल्लभाचार्य थे। महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उन्हें लीला गान करने का उपदेश दिया और उन्होंने सच्चे शिष्य की तरह इस उपदेश को आजीवन के लिए शिरोधार्य किया।
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सूरदास जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने काव्य में प्रयुक्त भाषा को इतना सुंदर, मधुर और आकर्षक बना दिया कि कई सैकड़ों वर्ष तक उत्तर-पश्चिम भारत की कविता का सारा राग-विराग, प्रेम-प्रतीति, भजन-भाव उसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त हुए हैं।