
धर्म डेस्क। ज्योतिष शास्त्र में विवाह से पहले कुंडली मिलान का विशेष महत्व माना गया है। इसी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पहलू होता है नाड़ी दोष। यह दोष तब बनता है जब वर और वधू दोनों की नाड़ी एक समान होती है यानी आदि, मध्य या अंत्य।
कहा जाता है कि नाड़ी दोष वैवाहिक जीवन में तनाव, असहमति और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। इसलिए, विवाह से पहले इसका निवारण करवाना आवश्यक माना जाता है, खासकर प्रेम विवाह के मामलों में।
सनातन धर्म में ज्योतिष शास्त्र का स्थान अत्यंत ऊँचा है। इसी विज्ञान के माध्यम से व्यक्ति के जीवन, स्वभाव, भविष्य और विवाह से जुड़ी गहन जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह से पहले कुंडली मिलान में कुल आठ गुण मिलान (अष्टकूट मिलान) किया जाता है, जिनमें नाड़ी दोष और भकूट दोष को सबसे प्रभावशाली माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है-
यदि वर और वधू की नाड़ी समान हो, तो उसे नाड़ी दोष कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर दोनों की नाड़ी 'मध्य' है, तो यह दोष माना जाएगा। इस स्थिति में विवाह के बाद संतान, स्वास्थ्य और वैवाहिक समरसता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
जब दोनों की नाड़ी एक जैसी होती है, तभी यह दोष लगता है। इसे “समान नाड़ी मिलान” कहा जाता है।
लड़का - मध्य नाड़ी
लड़की - मध्य नाड़ी
इस स्थिति में नाड़ी दोष लगेगा।
इसके विपरीत, यदि नाड़ियां भिन्न हों (जैसे एक की आदि और दूसरी की अंत्य), तो नाड़ी दोष नहीं माना जाएगा।
यदि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष पाया जाए, तो अनुभवी और विद्वान ज्योतिषाचार्य से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
इन अनुष्ठानों के बाद नाड़ी दोष के प्रभाव में कमी आती है, हालांकि इसे पूरी तरह समाप्त नहीं माना जाता। इसलिए विवाह से पहले उचित ज्योतिषीय परामर्श अत्यंत आवश्यक है।