
धर्म डेस्क। धर्मराज युधिष्ठिर का नाम सत्य और धर्म के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, लेकिन महाभारत में उनसे जुड़ी एक कथा ऐसी भी है, जो आज तक चर्चा में रहती है। यह कथा है युधिष्ठिर के उस श्राप की, जिसे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं से जोड़ा जाता है। आइए जानते हैं इस कथा के पीछे की पूरी कहानी।
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद एक दिन पांडवों की माता कुंती ने युधिष्ठिर को एक ऐसा रहस्य बताया, जिसने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। कुंती ने स्वीकार किया कि कौरवों की ओर से युद्ध लड़ने वाले कर्ण वास्तव में पांडवों के सबसे बड़े भाई थे। लोक-लाज के भय से कुंती ने यह सत्य वर्षों तक छिपाए रखा था और युद्ध के अंत के बाद ही इसका खुलासा किया।
यह सुनकर युधिष्ठिर गहरे शोक और क्रोध से भर गए। उन्हें लगा कि अगर यह सच पहले सामने आ जाता, तो महाभारत का भीषण युद्ध टल सकता था और अपने ही भाई की हत्या का पाप भी पांडवों के सिर न आता। इसी पीड़ा और पश्चाताप में युधिष्ठिर ने इस रहस्य को छिपाने के लिए अपनी माता कुंती को दोषी ठहराया।
कहा जाता है कि इसी क्षण भावनाओं में बहकर युधिष्ठिर ने कुंती सहित समस्त स्त्री समाज को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि महिलाएं अब कोई भी बात लंबे समय तक गुप्त नहीं रख पाएंगी और उनका रहस्य किसी न किसी रूप में प्रकट हो ही जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस श्राप का प्रभाव आज भी महिलाओं से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि इसी कारण महिलाएं अपने मन की बात या कोई भी गुप्त बात अधिक समय तक अपने भीतर नहीं रख पातीं और किसी न किसी से साझा कर देती हैं।
हालांकि यह कथा आस्था और धार्मिक विश्वासों से जुड़ी है, लेकिन महाभारत की यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि अधूरे सत्य और छिपे हुए रहस्य किस तरह बड़े विनाश का कारण बन सकते हैं।