धर्म डेस्क, इंदौर। जुलाई 2025 का महीना धार्मिक उल्लास, आध्यात्मिक ऊर्जा और विविध धार्मिक पर्वों से सराबोर रहेगा। इस माह न केवल सनातन परंपराओं के प्रमुख व्रत-त्योहार आएंगे, बल्कि हजारों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा और कांवड़ यात्रा जैसी महत्वपूर्ण धार्मिक यात्राओं में भी भाग लेंगे।
यह महीना ग्रह-नक्षत्रों के बड़े बदलावों का भी साक्षी बनेगा, जिससे विभिन्न राशियों पर शुभ, अशुभ और मिश्रित प्रभाव पड़ने की संभावना है। भोलेनाथ के भक्तों के लिए यह महीना विशेष रूप से पूज्य होगा क्योंकि 11 जुलाई से शिव की आराधना का पवित्र श्रावण मास प्रारंभ हो रहा है।
जुलाई का महीना तीज-त्योहारों से भरा रहेगा। इस बार देवशयनी एकादशी (6 जुलाई) से लेकर स्कंद षष्ठी (30 जुलाई) तक हर कुछ दिनों में कोई न कोई व्रत या पर्व भक्तों को भक्ति से सराबोर करेगा।
श्रावण मास 11 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान मालवा की सबसे बड़ी सात दिवसीय कांवड़ यात्रा 13 जुलाई से प्रारंभ होगी, जिसमें तीन हजार से अधिक श्रद्धालु भाग लेंगे।
यात्रा प्रभारी दीपेंद्रसिंह सोलंकी ने बताया कि 13 जुलाई को मरीमाता चौराहा से बसों द्वारा जत्था महेश्वर पहुंचेगा। 14 जुलाई को मां नर्मदा से जल भरकर पैदल यात्रा उज्जैन के लिए आरंभ होगी।
यात्रा मार्ग: महेश्वर → गुजरी → मानपुर → महू → इंदौर → उज्जैन
21 जुलाई को महाकाल का जलाभिषेक कर प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की जाएगी।
3 जुलाई से अमरनाथ यात्रा प्रारंभ हो रही है। इस वर्ष इंदौर सहित अहिल्या नगरी से 25 जत्थे, जिनमें 21 से लेकर 600 तक के श्रद्धालु शामिल हैं, बाबा बर्फानी के दर्शन हेतु जाएंगे।
ओमजटाशंकर पारमार्थिक सेवा समिति के अध्यक्ष नरेंद्र शर्मा ने बताया कि इस बार यात्रा अवधि केवल 38 दिन रखी गई है, जो पिछले एक दशक में सबसे कम है। प्रारंभ में रजिस्ट्रेशन नहीं मिलने से श्रद्धालु निराश थे, लेकिन अब उत्साह लौट आया है। समिति का 565 सदस्यीय जत्था 12 जुलाई को रवाना होगा।
ज्योतिषाचार्य आचार्य शिवप्रसाद तिवारी के अनुसार, जुलाई में छह प्रमुख ग्रह अपनी राशि बदलेंगे, जिससे राशियों पर गहरा असर पड़ेगा।
6 जुलाई को देवशयनी एकादशी से लेकर 1 नवंबर की देवप्रबोधिनी एकादशी तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाएंगे। इस दौरान भोलेनाथ सृष्टि संचालन का कार्य संभालेंगे। इस अवधि में गीता भवन, विद्याधाम, हरिधाम, हंसदास मठ सहित कई प्रमुख मंदिरों में देशभर से साधु-संतों का आगमन होगा और तीज-त्योहारों को पारंपरिक उल्लास से मनाया जाएगा।