धर्म डेस्क। हर वर्ष कन्या संक्रांति के अवसर पर विश्वकर्मा जयंती का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। उन्हें सृष्टि का प्रथम शिल्पकार और देवताओं का वास्तुकार माना जाता है। मान्यता है कि जो साधक इस दिन श्रद्धा भाव से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करता है, उसके कार्यक्षेत्र की बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में उन्नति तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा का परिचय देवताओं के दिव्य शिल्पी के रूप में मिलता है। उन्हें ब्रह्मा जी की सातवीं संतान माना जाता है, वहीं कुछ मतों के अनुसार वे भगवान शिव के अवतार भी हैं। विश्वकर्मा जी ने न केवल स्वर्गलोक और पुष्पक विमान का निर्माण किया, बल्कि उन्होंने सोने की लंका, भगवान कृष्ण के लिए द्वारका नगरी और कुबेरपुरी जैसी अद्भुत रचनाएँ भी की थीं। माना जाता है कि सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल और यमराज का कालदंड जैसे शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र भी उन्हीं की देन हैं।
भगवान विश्वकर्मा को प्राचीन काल का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े उपकर, औजार, की पूजा करने से कार्य में कुशलता आती है। शिल्पकला का विकास होता है। कहा जाता है कि देव शिल्पी विश्वकर्मा संसार के सबसे पहले इंजीनियर हैं, जो साधन और संसाधन के लिए जाने जाते हैं।
इस दिन कारखानों, दफ्तरों और कार्यस्थलों पर विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। ऐसा करने से व्यापार में वृद्धि, कार्य में सफलता और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। यह दिन श्रमिकों, तकनीशियनों, इंजीनियरों और कारीगरों के लिए भी अत्यंत विशेष माना जाता है।
विश्वकर्मा जयंती पर प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र के समक्ष श्रद्धा भाव से पूजा करें।
रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का 108 बार जप करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इससे साधक को सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
मंत्र- ॐ आधार शक्तपे नमः, ॐ कूमयि नमः, ॐ अनन्तम नमः, पृथिव्यै नमः।
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