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धर्म डेस्क। हिंदू पंचांग में वर्ष के हर मास का अपना अलग आध्यात्मिक महत्व होता है, लेकिन खरमास को विशेष रूप से संयम और साधना की अवधि माना गया है। शास्त्रों में इस समय विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों को वर्जित बताया गया है।
साल 2025 में खरमास की अवधि 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक रहेगी। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर इस दौरान मांगलिक कार्य क्यों नहीं किए जाते और इस समय क्या करना शुभ माना जाता है।
खरमास की शुरुआत तब होती है, जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं। इसे धनु संक्रांति भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस अवधि में सूर्य की गति और ऊर्जा को अपेक्षाकृत मंद माना जाता है। सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है, इसलिए जब उनकी शक्ति पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं होती, तब अन्य ग्रहों की शुभता भी प्रभावित होती है।
इसी कारण यह समय नए कार्यों की शुरुआत के लिए अनुकूल नहीं माना जाता और मांगलिक कार्यों को टालने की परंपरा चली आ रही है।
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य की सफलता ग्रहों, नक्षत्रों और ऊर्जा-चक्रों की अनुकूल स्थिति पर निर्भर करती है। खरमास के दौरान सूर्य की स्थिति कमजोर मानी जाती है, जिससे विवाह, मुंडन, नामकरण या गृह प्रवेश जैसे कार्यों के लिए आवश्यक शुभ योग नहीं बन पाते।
ऐसा कहा जाता है कि इस समय किए गए नए कार्य अपेक्षित फल नहीं देते, इसलिए शास्त्रों में इस अवधि को मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ बताया गया है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास को देवताओं के विश्राम का काल भी कहा जाता है। इस दौरान सृष्टि की ऊर्जा स्थिर रहती है, इसलिए बड़े और शुभ आयोजनों की बजाय आत्मचिंतन, तप और साधना पर जोर दिया जाता है।
हालांकि मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं, लेकिन यह समय आध्यात्मिक उन्नति के लिए बेहद उत्तम माना जाता है।
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना और सूर्यदेव को अर्घ्य देना शुभ फल देता है।
मंत्र-जप, ध्यान और पूजा-पाठ से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
तिल, गुड़, अन्न और वस्त्र का दान पुण्यकारी माना गया है।
जरूरतमंदों की सेवा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
खरमास को बाहरी गतिविधियों की बजाय आत्मशुद्धि, संयम और साधना का समय माना गया है। यही कारण है कि शास्त्र इस अवधि में शुभ और मांगलिक कार्यों को रोकने की सलाह देते हैं, ताकि आने वाले समय में किए गए कार्य पूर्ण फलदायी हों।