हिंदू धर्म में विवाह (शादी) एक पवित्र संस्कार माना गया है। एक तरफ तो अविवाहित लोगों के मन में महत्वपूर्ण सवाल गूंजता हैं कि 'शादी करें या ना करें' और अगर करें तो किससे? वहीं शादी-शुदा व्यक्ति यह सोचते हैं कि शादीशुदा जीवन को और अधिक मधुर कैसे बनाया जाए।
दोनों ही परिस्थितयों में एक बात समान है और वो है 'जिज्ञासा'। यदि हम बात शादीशुदा व्यक्ति की करें तो यदि वह दांपत्य जीवन में संपूर्ण निष्ठा और ईमानदारी का समावेश करें तो उनका यह जीवन मधुर हो सकता है।
अविवाहित लोगों के मन में महत्वपूर्ण सवाल आता है कि 'शादी करें या ना करें' ! लेकिन शादी क्यों करते हैं? यदि हम इस बात पर गौर करें तो काफी ज्यादा बेहतर है।
ऐसे में आप दोनों को ही एक दूसरे का आभारी होना चाहिए। यदि ऐसा करते हैं तो वैवाहिक जीवन मधुर तो बना ही रहता है बल्कि कभी भी दांपत्य जीवन में टकराव और तलाक की स्थिति नहीं आती है।
शादी को लेकर एक बात और याद रखना चाहिए कि, 'आप शादी इसलिए करते हैं, क्योंकि आपको सहारे या सहयोग की जरूरत होती है। यह सहयोग शारीरिक भी हो सकता है, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक या आर्थिक भी हो सकता है।'
सहयोग भले ही कैसा भी हो, लेकिन आप शादी करके दूसरे पर परोपकार नहीं कर रहे। आप शादी करते हैं, क्योंकि आपको उससे कुछ खास चीजें चाहिए होती हैं। अगर सामने वाला आपको वो चीजें देने के लिए तैयार है, तो आपको उसका आभारी होना चाहिए। अगर ऐसी सोच रखेंगे तो ज्यादा टकराव नहीं होगा।
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और यदि इस रिश्ते को प्रेम, सम्मान, परवाह और जिम्मेदारी के साथ जियें तो यह एक बेहद खूबसूरत रिश्ता हो सकता है। यही कारण हैं है कि हमारे धर्म ग्रंथों में विवाह को 16 संस्कार में से एक और पवित्र रिश्ता माना है।