
धर्म डेस्क। भगवान श्रीराम, विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम, रघुनाथ, राघव जैसे कई नामों से जाना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उनके नाम के साथ ‘चंद्र’ क्यों जोड़ा जाता है और उन्हें श्रीरामचंद्र क्यों कहा जाता है? इसके पीछे बेहद खास कारण हैं।
श्रीराम सूर्यवंशी वंश में जन्मे थे, इसलिए उन्हें ‘सूर्यवंश का चंद्रमा’ भी कहा जाता है। ‘चंद्र’ शब्द का अर्थ केवल चंद्रमा नहीं, बल्कि उसकी सुंदरता, शीतलता और सौम्यता का प्रतीक भी है। वाल्मीकि रामायण में कई स्थानों पर भगवान राम की तुलना चंद्रमा से की गई है यानी जो मन को शांति और सुकून देने वाले हों।
यही वजह है कि उनके नाम के साथ ‘चंद्र’ जुड़ा हुआ है। चंद्रमा की तरह श्रीराम का स्वभाव भी सौम्य, शांत और करुणामय था। उनके नाम में ‘चंद्र’ जोड़ना उनके इन दिव्य गुणों का प्रतीक है।

रामचरितमानस के सुंदरकांड में लिखा है -
‘कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हारा प्रिय दास।
तव मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामलता आभास।।’
इसका अर्थ है कि हनुमान जी ने चंद्रमा में भगवान राम की छवि देखी और कहा कि चंद्रमा आपका प्रिय दास है। इसी कारण भगवान को रामचंद्र कहा जाने लगा।
एक अन्य कथा के अनुसार, बचपन में श्रीराम चंद्रमा के प्रति बहुत आकर्षित थे। जब वे रोते थे, तो माता कौशल्या उन्हें एक पात्र में पानी के जरिए चंद्रमा का प्रतिबिंब दिखाकर शांत कर देती थीं। तभी से भगवान राम और चंद्रमा के बीच यह स्नेहपूर्ण संबंध माना जाता है।