वराह पुराण में उल्लेख मिलता है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं। यही वजह है कि ब्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहां आते हैं। हजारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।
विद्वानों, संतों व महात्माओं के इन यात्राओं को लेकर विभिन्न मत हैं। इसलिए इन यात्राओं का कोई निश्चित समय नहीं है। अधिकतर यात्राएं चैत्र, बैसाख, में होती हैं। वार्षिक यात्रा चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक निकाली जाती है। आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा करने का भी विधान है।
84 कोस की यात्रा से जुड़ी 15 बातें...
- ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा सदियों पुरानी है।
- 84 कोस यात्रा चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं।
- कुछ विद्वान मानते हैं कि परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है।
- चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथसंहिता में भी है।
- पुराणों में वर्णित है कि सतयुग में भक्त ध्रुव ने भी यही आकर नारद जी से गुरु मन्त्र लिया था और अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी।
- त्रेता युग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी।
द्वापर युग में उद्धव जी ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की थी।
- कलियुग में जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप बैल्य संघाराम आदि स्थलों के सांख्य इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।
- 14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।
- 15वीं शताब्दी में माधव सम्प्रदाय के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज की यात्रा का वर्णन मिलता है।
- 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य मत केसरी चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, - सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने ब्रज यात्रा की थी।
- शास्त्रों में कहा गया है कि परिक्रमा करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल व निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- कहते हैं 84 कोस की यात्रा करने वाले जातक को 84 लाख योनियों से निजात मिलती है।
- शास्त्रों के मतानुसार अयोध्या के भगवान राम का राज्य 84 कोस (252 किलोमीटर) में फैला हुआ था। उनके राज्य का नाम था कौशलपुर जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इस स्थान पर दशकों से 84 कोसी परिक्रमा की परंपरा है।
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- इस यात्रा के दायरे में आने वाले सभी छह जिलों बाराबंकी,गोंडा, बहराइच, आंबेडकर नगर, फैजाबाद और बस्ती में इसकी तैयारी होती है। उक्त जिलों में यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं जहां रुककर यात्री आराम करते हैं।