Chanakya Niti: लोभी, अभिमानी, मूर्ख और विद्वान को ऐसे करें वश में, जानें क्या कहती है चाणक्य नीति
Chanakya Niti आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि राजा को राष्ट्र के पापों का फल भोगना पड़ता है।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Sat, 06 May 2023 09:05:32 AM (IST)
Updated Date: Sat, 06 May 2023 09:05:32 AM (IST)

Chanakya Niti । आचार्य चाणक्य ने हर व्यक्ति के प्रति अलग-अलग व्यवहार की व्याख्या करते हुए एक श्लोक में लोभी, अभिमानी, मूर्ख और विद्वान व्यक्ति को अपने वश में करने के बारे में विस्तार उल्लेख किया है। वहीं राजा, पति और गुरु को किन गलतियों से बचना चाहिए। इस बारे में भी विस्तार से चर्चा की है -
राजा राष्ट्रकृतं भुंक्ते राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि राजा को राष्ट्र के पापों का फल भोगना पड़ता है। राजा के पाप पुरोहित भोगता है। पत्नी के पाप उसके पति को भोगने पड़ते हैं और शिष्य के पाप गुरु भोगते हैं।
आचार्य चाणक्य यहां राजा, पति और गुरु के कर्तव्य पालन के बारे में जिक्र कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि राजा यदि राष्ट्र को ठीक ढंग से नहीं चलाता अर्थात अपना कर्तव्य पालन नहीं करता तो उससे होने वाली हानि राजा को ही कष्ट पहुंचाती है। यदि पुरोहित अर्थात राजा को परामर्श देने वाला व्यक्ति राजा को ठीक तरह से सलाह नहीं देता है तो पुरोहित पाप का भागी बनता है और उसे इस बुरे कर्मों का भागी बनना ही पड़ता है। इसी प्रकार यदि
स्त्री यदि कोई बुरा कार्य करती है तो उसका पति दोषी होता है। इसी प्रकार शिष्य द्वारा किए गए पाप का वहन गुरु को करना पड़ता है।
ऋणकर्ता पिता शत्रु माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र शत्रुरपण्डितः:॥।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि ऋणी पिता अपनी संतान का शत्रु होता है। यही स्थिति बुरे आचरण वाली माता की भी है। सुन्दर पत्नी अपने पति की और मूर्ख पुत्र अपने माता-पिता का शत्रु होता है। आचार्य चाणक्य के मुताबिक किसी भी कारण से अपनी संतान पर ऋण छोड़कर मरने वाला पिता शत्रु के समान होता है क्योंकि बाद में उस ऋण का भुगतान संतान को करना पड़ता है। इसी प्रकार व्यभिचारिणी माता भी शत्रु के समान मानी गई है, क्योंकि उससे परिवार कलंकित होता है। वहीं अत्यधिक
सुंदर स्त्री पति के लिए शत्रु के समान है क्योंकि बहुत से लोग सुंदर स्त्री की ओर आकृष्ट होकर उसे पथभ्रष्ट करने का प्रयास करते हैं।
लुब्धमर्थेन गृह्लीयात् स्तब्धमज्जलिकर्मणा।
मूर्ख: छन्दो वृत्तेन यथार्थत्वेन पण्डितम्।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि लोभी को धन देकर, अभिमानी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करके और विद्वान को सच्ची बात बताकर वश में करने का प्रयत्न करना चाहिए। आचार्य चाणक्य के मुताबिक लोभी व्यक्ति अपने स्वार्थ में इतना अंधा होता है कि वह धन प्राप्ति के बिना संतुष्ट नहीं होता। उसे धन देकर वश में किया जा सकता है। जिस व्यक्ति को अभिमान है, अहंकार है, उसे नम्रतापूर्वक व्यवहार करके वश में किया जा सकता है। मूर्ख व्यक्ति सदैव हठी होता है, इसलिए उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करके उसे अपना बनाया जा सकता है और विद्वान व्यक्ति को वश में करने का सबसे सही उपाय यह है कि उसे वास्तविकता से परिचय कराया जाए।
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