Chanakya Niti: विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो तत्काल छोड़ दें ये इच्छा
Chanakya Niti स्त्रियां अपने दुस्साहस के कारण ऐसे कार्य कर सकती हैं, जिन्हें करने से पूर्व पुरुष कई बार सोचेगा।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Tue, 15 Aug 2023 01:50:46 PM (IST)
Updated Date: Tue, 15 Aug 2023 01:50:46 PM (IST)
चाणक्य का कहना है कि विद्या प्राप्ति के समय विद्यार्थी को सुख-सुविधाओं की आशा नहीं करनी चाहिए।HighLights
- यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए।
- यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम को तत्काल त्याग देना चाहिए
- विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता।
Chanakya Niti। आचार्य चाणक्य ने जीवन को सही तरीके से जीने के लिए कई नैतिक सिद्धांत बताए हैं। यदि आचार्य चाणक्य की इन बातों को जीवन में कोई पूरी तरह से लागू कर लेता है तो कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ेगा। आचार्य चाणक्य ने विद्यार्थियों के संबंध में यह महत्वपूर्ण बात कही है।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए। यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम को तत्काल त्याग देना चाहिए, क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता।
कठोर तप से ही मिलती है विद्या
चाणक्य का कहना है कि विद्या प्राप्ति के समय विद्यार्थी को सुख-सुविधाओं की आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि कठोर तप से ही विद्या की प्राप्ति हो सकती है। यदि विद्यार्थी विद्या में पारंगत होना चाहता है तो उसे निरंतर अभ्यास करना पड़ता है, जो सुख से नहीं हो सकता है। भोग और ज्ञान परस्पर विरोधी हैं।
कवयः किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः
मद्यपाः किं न जल्पन्ति किं न भक्षन्ति वायसाः
आचार्य चाणक्य ने आगे कहा है कि कवि अपनी कल्पना से क्या नहीं देख सकते? अर्थात् सभी कुछ देख सकते हैं और स्त्रियां क्या नहीं कर सकतीं? वे सभी प्रकार की मनमानी कर सकती हैं। नशे में चूर व्यक्ति क्या नहीं बोल सकता? अर्थात् कुछ भी बोल सकता है और कौआ क्या नहीं खाता ? आचार्य ने कवि शब्द का प्रयोग यहां ऋषि और कवि दोनों अर्थों में किया है। कहा जाता है, 'जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि।' और ऋषि उसे कहते हैं, जो मंत्रों का साक्षात्कार करता है, ‘ऋषयो मंत्र द्रष्टारः’।
स्त्रियां अपने दुस्साहस के कारण ऐसे कार्य कर सकती हैं, जिन्हें करने से पूर्व पुरुष कई बार सोचेगा। नशे में चूर व्यक्ति के मन में जो आता है, बक देता है। उस समय उसे भले-बुरे का ज्ञान नहीं होता। इसी प्रकार कौआ भी अपने स्वभाव के कारण कहीं भी जा बैठता है।
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