
धर्म डेस्क, इंदौर। Ganesh Ji Katha: सनातन धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ विशेष कार्यों में सफलता के लिए उनके निमित्त व्रत भी रखा जाता है। भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है। सनातन धर्म ग्रंथों में उन्हें आदिदेव नाम से भी संबोधित किया गया है। भगवान गणेश हर युग में अवतरित हुए हैं।
वर्तमान समय में भगवान गणेश को रिद्धि-सिद्धि दाता के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की परेशानियां दूर हो जाती हैं। द्वापर युग में कौंच गंधर्व को भगवान गणेश का वाहन बनना पड़ा था, लेकिन इसके पीछे क्या कारण रहा, यह हम आज बताने जा रहे हैं।
सतयुग में भगवान गणेश को विनायक कहा गया। सतयुग में भगवान गणेश का वाहन सिंह था। वहीं, त्रेता युग में भगवान गणेश को मयूरेश्वर कहा गया। द्वापर युग में देवों के देव महादेव के पुत्र गजानन के रूप में पूजे गए। द्वापर युग में अवतरित हुए भगवान गणेश का वाहन मूषक माना गया। गणेश जी की चार भुजाएं हैं। कलयुग में भगवान गणेश को धूम्रवर्ण कहा जाता है। इस युग में भगवान गणेश की सवारी नीला घोड़ा है। कलयुग में भगवान गणेश की दो भुजाएं हैं। भगवान गणेश को आदिदेव कहा जाता है। प्राचीन काल से ही भगवान गणेश की पूजा की जाती रही है। शास्त्रों में भगवान गणेश को प्रणव कहा गया है।
प्राचीन काल में सौभरि ऋषि अपनी अर्द्धांगिनी मनोमयी के साथ सुमेरु पर्वत पर रहते थे। सौभरि ऋषि एक महान तपस्वी थे। उनके पुण्य, प्रताप और तपस्या की ध्वनि तीनों लोकों में सुनाई देती थी। उनकी पत्नी मनोमयी अत्यंत सुन्दर थी। एक दिन सौभरि ऋषि किसी विशेष कार्य से वन में गये हुए थे। कहा जाता है कि सौभरि ऋषि जंगल में लकड़ी लेने गए थे। उसी समय मनोमयी पर मोहित होकर कौंच गंधर्व सौभरि ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। कौंच नाम के एक गंधर्व को मनोमयी के साथ प्रणय करने की इच्छा हुई।
फिर उसने बिना किसी डर के मनोमयी का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मनोमयी डर गई और उसने कौंच को ऐसा कर्म न करने की सलाह दी। जब कौंच ने असहमति जताई, तो मनोमयी ने दया की भीख मांगी। इसके बावजूद, कौंच असहमत थे। उस समय मनोमयी ने संसार के रचयिता भगवान विष्णु की आराधना की। तुरंत सौभरि ऋषि आश्रम पहुंचे। कौंच गंधर्व को देखकर वे क्रोधित हो गया।
उन्होंने क्रोधित होकर कौंच को श्राप दिया कि तुमने चोरों की तरह मेरी पत्नी का हाथ पकड़ लिया। इसके लिए तुम मूषक बनोगे और चोर की तरह चोरी करके अपना पेट भरोगे। सौभरि ऋषि के श्राप से कौंच भयभीत हो गया। उस समय कौंच ने सौभरि ऋषि से क्षमा मांगी। तब सौभरि ऋषि ने कहा कि जब तक द्वापर युग में भगवान गणेश का जन्म नहीं होगा, तब तक श्राप वापस नहीं लिया जा सकता। उस समय तुम उनकी सवारी बन जाओगे। भगवान गणेश का वाहन बनने से आपको अपना खोया हुआ सम्मान वापस मिल जाएगा।
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