धर्म डेस्क, इंदौर। Jatayu Katha: 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। देश भर में इस दिन का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। इस खास दिन के लिए भगवान राम के जीवन से जुड़ी कुछ कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल, आज हम गिद्धराज जटायु और भगवान राम से जुड़ी एक कथा पर चर्चा करने जा रहे हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, गिद्धराज जटायु ने सीता हरण के दौरान रावण से युद्ध किया था। इस युद्ध में रावण ने जटायु को बुरी तरह घायल कर दिया था।
जटायु की मृत्यु एक सर्वतीर्थ नामक स्थान पर हुई थी, जो कि आज भी नासिक के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ कहा जाता है, क्योंकि यहीं पर जटायु ने मरणासन्न स्थिति में भगवान राम को माता सीता के बारे में बताया था। श्रीराम ने इसी गोदावरी नदी के तट पर जटायु का अंतिम संस्कार किया था। साथ ही अपने पिता और जटायु का श्राद्ध किया था।
कथा के अनुसार, हिरण मारीच को मारने के बाद जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण अपनी कुटिया में पहुंचते हैं और वहां माता सीता को न पाकर दुखी होते हैं। इसके बाद वे जंगल और नदी के किनारे माता जानकी की तलाश करते हैं। परन्तु उन्हें सीता जी कहीं नहीं मिलती। इसके बाद रास्ते में मरणासन्न स्थिति में गिद्धराज जटायु मिलते हैं और वे दुखी हो जाते हैं। श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण विलाप करने लगते हैं।
गिद्धराज जटायु को देखकर भगवान श्रीराम उन्हें गोद में ले लेते हैं और उनकी घायल अवस्था का कारण पूछते हैं। बाद में जटायु, भगवान श्री राम को माता सीता के अपहरण की सूचना देते हैं। वे कहते हैं कि हे राम, जानकी जी को लंका का राजा रावण ले गया है। जब मैंने सीता जी को उसके चंगुल से छुड़ाने की कोशिश की, तो उसने अपनी खड़ग से मेरे पंख काट दिए। उसके बाद मैं जमीन पर पड़ा, आपकी राह देख रहा था।
इतना कहते ही गिद्धराज जटायु का शरीर प्राणहीन हो गया। जटायु के शरीर छोड़ने के बाद भगवान श्री राम की आंखों से आंसू बहने लगते हैं और एक पिता की तरह श्री राम ने गोदावरी के तट पर गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार किया और सभी आवश्यक पितृ संस्कार पूरे किए।
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