Chaitra Navratri 2020: नवरात्र के अवसर पर मां भवानी की आराधना करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपक्रम किए जाते हैं। मंत्रोच्चार द्वारा देवी को प्रसन्न किया जाता है तो उपवास के माध्यम से माता की उपासना की जाती है। माता की साधना के लिए कड़े जप-तप किए जाते हैं और उनको मेवे, मिष्ठान्न और फल का भोग लगाया जाता है। देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अवसरों पर खासकर नवरात्र में हवन का भी विधान है। मान्यता है कि देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किए गए हवन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और वातावरण शुद्ध होता है। फिलहाल नवरात्र चल रहे हैं और देशभर में Lockdown भी जारी है, इसलिए घर में सरल विधि से औषधियों के साथ देवी की प्रसन्नता के लिए हवन करें।
नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन का प्रावधान है। शास्त्रोक्त विधि से हवन करने पर आराधना का पूरा फल प्राप्त होता है। इसलिए विशेष विधि से नवरात्र के हवन को करना चाहिए, दुर्गा सप्तशती के सभी अध्याय की अलग-अलग सामग्रियों से आहुति दी जाती है, जिसकी विधि इस प्रकार है।
घी, सुपारी,कमलगट्टे से दे आहुति
दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय की आहुति में देशी घी में भिगोकर एक पान, 1 सुपारी, 1 कमलगट्टा, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल और शहद को सुरवा में रखकर खड़े होकर आहुति देना चाहिए। दूसरे अध्याय में भी देशी घी में भिगोकर एक पान, 1 सुपारी, 1 कमलगट्टा, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल और शहद की आहुति दी जाती है, लेकिन इसमें गुग्गल की आहुति विशेष होती है। तीसरे अध्याय की आहुति पहले अध्याय की सामग्री के अनुसार श्लोक संख्या 38 से देना चाहिए। चौथे अध्याय की आहुति पहले अध्याय की श्लोक संख्या 1 से 11 तक मिश्री और खीर के साथ दी जाती है। चौथे अध्याय की आहुति में मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर का नाश होता है। इन मंत्रों के स्थान पर ' ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा' मंत्र बोलकर आहुति देना चाहिए। ऐसा करने से समस्त प्रकार के भय का नाश होता है।
सफेद चंदन, कत्थे से दे आहुति
पांचवे अध्याय की आहुति को पहले अध्याय के श्लोक क्रमांक 9 को बोलते हुए कपूर, पुष्प, और ऋतुफल से देना चाहिए। छठे अध्याय की आहुति पहले अध्याय के 23 वें श्लोक से भोजपत्र के साथ देना चाहिए। सातवे अध्याय की आहुति पहले अध्याय के 10वे श्लोक से दो जायफल के साथ, उन्नीसवें श्लोक से सफेद चंदन के साथ और 27वें श्लोक से इन्द्र जौ के साथ आहुति देना चाहिए। आठवे अध्याय की आहुति में पहले अध्याय के 54वें और 62वें श्लोक से रक्त चंदन के साथ आहुति देना चाहिए। नौवें अध्याय की आहुति पहले अध्याय के 37वें श्लोक में एक बेलफल और श्लोक नंबर 40 से गन्ने के साथ आहुति देना चाहिए। पांचवे श्लोक से समुद्र झाग के साथ और 31 वें श्लोक के साथ कत्थे से आहुति देना चाहिए। ग्यारहवें अध्याय की आहुति पहले अध्याय के श्लोक संख्या 2 से 23 तक फूल और खीर, श्लोक संख्या 29 में गिलोय के साथ, श्लोक संख्या 31 में भोजपत्र श्लोक संख्या 39 में पीली सरसों, श्लोक संख्या 42 में माखन-मिश्री, श्लोक संख्या 44 में अनार और अनार का फूल, श्लोक संख्या 49 में पालक के साथ, , श्लोक संख्या 54 और 55 में फूल और चावल के साथ देना चाहिए।
काली मिर्च चावल से दे आहुति
बारहवे अध्याय की आहुति पहले अध्याय के श्लोक 10वें से नीबू काटकर और उस पर रोली लगाकर और पेठे के साथ, श्लोक संख्या 13वें में काली मिर्च के साथ श्लोक संख्या 16 में बाल-खा के साथ, श्लोक संख्या18 में कुशा के साथ, श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा के साथ , श्लोक संख्या 20 में ऋतु फल, फूल, चावल और चन्दन के साथ, श्लोक संख्या 21 में हलवा और पुरी के साथ, श्लोक संख्या 40 में कमल गट्टे, मखाने और बादाम के साथ और श्लोक संख्या 41 में इत्र, फूल और चावल के साथ आहुति देना चाहिए। तेरहवे और अंतिम अध्याय की आहुति पहले अध्याय के श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल और फूल के साथ देना चाहिए।