कबीर का नाम कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। कबीर ने अपनी बात दोहों के जरिए कही, यह दोहे जिंदगी के उस सच को बयां करते हैं, जिसको जानने के लिए हम ताउम्र भटकते रहते हैं।
ऐसे ही कुछ दोहे और उनके हिंदी अर्थ यहां संकलित हैं...
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
* कहने का आशय यह है कि जब में इस संसार में बुराई खोजने चला तो मैनें खुद से बुरा किसी को भी नहीं पाया।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
* महान पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, तो उससे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं होता है।
तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुं उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
* कबीर कहते हैं कि छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करें क्योंकि यही तिनका जब उड़कर आंख में आ जाता है तो मामला गंभीर हो जाता है।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
* सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। इसलिए तो तलवार का मूल्य किया जाता है न कि उसकी म्यान का।
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
* मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
* वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
* कभी कहते हैं न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
* संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी नहीं होना चाहिए।