धर्म डेस्क, इंदौर। किसी भी कथा, पाठ, यज्ञ और अनुष्ठान के बाद भगवान की आरती की जाती है, मान्यता है कि इसके बाद धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण होता है। स्कंद पुराण सहित विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में आरती करने के नियम बताए गए हैं। हम इन्हीं नियमों को आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आपको भी पूजन का पूर्ण फल प्राप्त हो।
मान्यता है कि भगवान का पूजन करने के बाद आरती उनकी स्तुति है, इस दौरान भक्त पूजन में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगते हैं और अपने धार्मिक कार्य की पूर्णता के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।
आरती का पहला नियम है कि यह भगवान के सामने खड़े होकर की जाती, बैठकर आरती नहीं की जाती है। आरती की थाली को भगवान के सामने थोड़ा झुककर पकड़ा जाता है। इससे आरती करने का वाले का भगवान के प्रति भक्ति भाव प्रकट होता है। आरती हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही थाली घुमाते हुए की जाती है। कभी भी इसके विपरीत दिशा में आरती की थाली नहीं घुमाई जाती है।
घी के दीपक से आरती करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भक्त अपनी क्षमता अनुसार तेल के दीपक से भी आरती कर सकते हैं। आरती की थाली में दीपक के साथ फूल, कुमकुम भी रखना चाहिए, यह शुभता के प्रतीक माने गए हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान में 14 भुवन समाए हुए हैं। 14 बार उनकी आरती उतारने से सभी तक भक्तों का नमस्कार पहुंचता है। पूजा के लिए मंत्र, विधि और नियम ना जानने वाला भक्त अगर आरती ही सही नियम से कर लेता है, तो उसे पूजन का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
घर में रोजाना सुबह और संध्या के समय आरती करने का विशेष महत्व माना गया है। कई मंदिरों में मंगला आरती, शृंगार आरती, भोग आरती, संध्या आरती और शयन आरती की जाती हैं। इस दौरान भगवान की दिनचर्या को अनुसार आरती का क्रम चलता है। भगवान को जगाने के साथ उनका शृंगार करने, उन्हें प्रसाद का भोग लगाने और उन्हें शयन कराने के लिए अलग-अलग आरती की जाती हैं।