ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों के राजा सूर्य देव सनातन धर्म में पूजनीय हैं। सूर्य एक प्रत्यक्ष देवता है। वह समस्त संसार की ऊर्जा का केंद्र है। नवग्रहों में सूर्यदेव को सबसे विशिष्ट स्थान होता है। सूर्य देव को पिता, पुत्र, प्रसिद्धि, यश, वैभव, तेज, आरोग्यता, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का कारक माना गया है। कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है। तो चलिए जानते हैं इस पाठ को करने की विधि और इससे मिलने वाले लाभ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार त्रेता युग में ऋषि अगस्त्य ने भगवान श्री राम को रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए यह स्त्रोत दिया था। आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य देव से संबंधित है। इस स्तोत्र का पाठ सूर्य देव को प्रसन्न व उनकी कृपा पाने के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से जीवन के अनेक कष्टों का निवारण होता है।
1.सूर्यादय से पूर्व स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2.एक तांबे के लोटे में जल लेकर रोली या चंदन और पुष्प डालकर प्रात: सूर्य को अर्पित करें।
3.सूर्य को जल देते समय गायत्री मंत्र का जाप करें और वहीं सूर्यदेव के समक्ष आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
4. प्रयास करें कि इस पाठ को शुक्ल पक्ष के किसी रविवार से प्रारंभ करें। ऐसा करना उत्तम माना गया है।
5. आदित्य हृदय स्तोत्र का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्योदय के समय इसका पाठ करना चाहिए।
6. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि यदि आप आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते हो तो रविवार के दिन मांसाहार, मदिरा तथा तेल का प्रयोग न करें।
ग्रहों के राजा भगवान सूर्य देव को समर्पित आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। चेहरे पर अलग ही चमक दिखाई देती हैं। व्यक्ति का आलस दूर होता है एवं कार्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करता है। यदि आपको किसी प्रकार का सरकारी विवाद चल रहा हो तो आपको इस स्तोत्र का पाठ करने से लाभ होता है। सूर्य को पिता का कारक माना गया है। आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने से पिता पुत्र के संबंध अच्छे होते हैं। किसी व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो तो उसके लिए यह पाठ रामबाण उपाय माना है। इस स्त्रोत का पाठ करने से आपके प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध स्थापित होते हैं।
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