जब हम घर बनाते हैं तो पानी का इंतजाम पहले करते हैं। कोई नल लाइन का कनेक्शन लेता है तो कोई घर में बोरवेल खुदवाते हैं। लेकिन यहां हम कुछ ऐसी विधियां बताएंगे, जिनसे बोरवेल में पानी निकलेगा या नहीं ये पता लगाया जा सकता है।
यह पद्धति प्राचीन हैं, लेकिन आज भी उतनी ही कारगर है, जितनी पहले थी। भू-गर्भीय जल की धारा के बारे में संस्कृत में एक ग्रंथ ‘उदकार्गल’ है लेकिन आम लोगों की एक प्रचलित पद्धति उन वृक्षों को जानने-पहचाने की भी होती है जिनके आसपास पानी होता है।
ऐसे भू-भाग में मिलता है पानी
- यदि घर के आस-पास टेसू या पलास, छींद, अकाबू या अकाब के वृक्ष हों तो वहां पानी के संकेत हैं।
- अकाब की झाड़ियों की श्रृंखला भू-गर्भीय जल की धारा का पता देती है।
- गूलर, कोहा या अर्जुन, जामुन, अमरूद, चंदरजोत आदि पेड़ों के पास भी भू-गर्भीय जल मिलता है।
- सागौन तथा पीपल के पास पानी होने की बहुत कम संभावना मानी जाती है।
बोरवेल करवाने से पहले करें ये वैदिक उपाय
- इस विधि में हाथ में जामुन या गूलर की केंटीनुमा लकड़ी लेकर चलते हैं और जहां भी भू-गर्भीय जल होता है। वहां यह लकड़ी घूमने लगती है।
- जहां मकान बनवा रहे हैं वहां पहले नंगे पांव घूमें और जहां थोड़ी ऊष्णता लगे वहां पलाश के पत्ते रखकर उन पर मिट्टी का एक ढेला रख दिया जाता है। इस पत्ते पर सुबह यदि पानी की बूंदें मिलें तो वहां पानी मिलने के संकेत मिलते हैं।
- इंजेक्शन की छोटी शीशियों में पानी भरकर उसे धागे से बांधकर जहां मकान बना रहे वहां घूमने की एक पद्धति है। जहां पानी से भरी यह शीशी घूमने लगती है, वहां निश्चित ही पानी होता है।
- हथेली पर नारियल लेकर खेत में चलने का तरीका भी कई लोग करते हैं। यह भी प्रासंगिक है। कहते हैं कि जहां यह नारियल गिर जाए वहां जरूर ही पानी होगा। पानी होने वाली जगह पर कुछ लोगों के रोम खड़े हो जाते हैं।
- जामुन, अकाब, मेंहदी, बिही या गूलर की कैंटी के आकार की दो लकड़ियों को हाथ में रखकर खेत में चला जाता है। जहां पानी होता है वहां यह लकड़ी तेजी से घूमने लगती है।
वैज्ञानिक विधि
भू-भाग में पानी है या नहीं इसका आधुनिक वैज्ञानिक तरीका ‘मूर और बेली’ का भी है। जिसमें इन वैज्ञानिकों ने मानक ग्राफ बनाए थे। वैज्ञानिक प्रक्रिया में जमीन में एक केंद्र के समान दूरियों पर इलेक्ट्रोड्स गाड़कर करंट छोड़ा जाता है। जिसमें पानी का बहाव देखा जाता है।
इनसे प्राप्त आंकड़ों का ग्राफ ‘मूर और बेली’ के ग्राफ से मिलाकर पानी का पता किया जाता है। इस यंत्र के प्रयोग में एक तो तीन सौ मीटर के घेरे में बिजली के कोई तार नहीं होने चाहिए और दूसरे यंत्र ठीक-ठाक और उसके तार सीधे होने चाहिए।
अमूमन, पानी के बहाव के ग्राफ की व्याख्याएं सही नहीं होतीं इसलिए इसे दुबारा जांचना जरूरी होता है। लेकिन अक्सर इस पद्धति में लगने वाला पारदर्शी कागज तक उपलब्ध नहीं हो पाता। इस तरीके में सब कुछ ठीक-ठाक होने पर 60 से 70 प्रतिशत तक सफलता मिल जाती है।