नईदुनिया प्रतिनिधि, दमोह। पितृपक्ष चल रहा है। भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू हुआ यह पावन समय पूर्वओं के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। शहर और आसपास के क्षेत्रों में लोग नदियों, तालाबों और कुओं के पास जाकर तर्पण कर रहे हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार तर्पण करते समय धोती पहनना शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है इससे विशेष कृपा मिलती है।
दमोह में सुबह से ही लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते दिखाई दिए, एसपीएम नगर स्थित श्री शिव शनि हनुमान मंदिर के पुजारी पं. बालकृष्ण शास्त्री का कहना है कि पितृपक्ष में पुरुष स्नान कर स्वच्छ धोती पहनकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर तर्पण करते है।
तांबे और पीतल के पात्र में जल, काले तिल, जौ और कुशा रखकर मंत्रोच्चार के साथ पितरों को तर्पण अर्पित किया गया। जिले के नदी एवं तालाबों और पवित्र स्थलों पर लोगों ने बड़ी आस्था से यह अनुष्ठान पूरा किया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार तर्पण करते समय धोती पहनना शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है।
माना जाता है कि इस परंपरा से किए गए तर्पण से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे अपने वंशजों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते है। दमोह में कई परिवारों ने अपने घरों पर भी तर्पण कर पूर्वजों को स्मरण किया।
स्नान कर धोती पहने, स्वच्छ चौकी पर आसन लगाएं। तांबे या पीतल के पात्र में जल, काले तिल, जौ और कुशा रखें। पितरों का नाम लेकर संकल्प ले और मंत्र उच्चारित करें। बचा हुआ जल पेड़ या जलाशय में प्रवाहित करें।
आवश्यक सामग्री
शुद्ध जल, काले तिल, जौ के दाने, दूर्वा धास कुशा, तांबे पीतल का पात्र, गाय का कच्चा दूध, पुरुषों के लिए स्वच्छ धोती।