देवों के देव महादेव का माह होता है 'श्रावण माह'। श्रावण माह में प्रकृति भी पूरी तरह से मेहरबान रहती है। इस माह में शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त भोलेनाथ की भक्ति करते हैं। और रुद्राक्ष की माला पहनकर शिव की भक्ति में पूरी तरह से खो जाते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसु से हुई है। रुद्राक्ष की विशेषता है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो सकारात्मक ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी नकारात्मक ऊर्जा कमजोर नहीं कर सकती है।
रुद्राक्ष दो शब्दों रुद्र यानी भगवान शंकर व अक्ष यानी आंसू से मिलकर बना है। शिवमहापुराण के अनुसार एक समय भगवान शंकर ने संसार के उपकार के लिए हजारों वर्ष तप किया। जब उन्होंने अपने नेत्र खोले तो उनके नेत्र से आंसु की बूंदें पृथ्वी पर गिर गई।
इन बूंदों ने वृक्ष का रूप धारण किया। इस वृक्ष से जो फल प्राप्त हुआ उसकी गुठली ही रुद्राक्ष के रूप में मनुष्य को प्राप्त हुआ। इसे धारण करने से एक ऐसी सकारात्मक उर्जा मिलती है, जो मनुष्य को उसके दैहिक, दैविक व भौतिक दु:खों को दूर करने में सहायक है। वैसे 24 से 48 घंटे में ही इसका प्रभाव दिखने लगता है पर कार्यसिद्धी में रुद्राक्ष का प्रभाव 40 दिन में दिखता है।
रुद्राक्ष धारण करने के प्रसंग में पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुरक्षित विकल्प है जो हर किसी स्त्री, पुरुष, बच्चे, हर किसी के लिए अच्छा माना जाता है। यह सेहत और सुख की दृष्टि से भी फायदेमंद हैं, जिससे रक्तचाप नीचे आता है और स्नायु तंत्र तनाव मुक्त और शांत होता है।
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मान्यता है कि एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना गया है। एकादश मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है। वहीं, एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है। इस एकमुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।