धर्म डेस्क। पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) का समापन सर्वपितृ अमावस्या के साथ होने जा रहा है। इस दिन विशेष रूप से सभी पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है, जो किसी कारणवश पूरे पितृ पक्ष में संभव नहीं हो पाया हो।
इस बार सर्वपितृ अमावस्या 2025 के दिन सूर्य ग्रहण भी लग रहा है। हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, फिर भी इसका धार्मिक प्रभाव माना जाएगा। इसी को लेकर लोगों के मन में सवाल उठ रहा है - क्या सर्वपितृ अमावस्या के दिन तुलसी की पूजा की जा सकती है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य ग्रहण के दिन तुलसी की पूजा करना शुभ नहीं माना जाता। खासकर सर्वपितृ अमावस्या जैसे विशेष दिन पर जब ग्रहण का प्रभाव हो, तो तुलसी को छूना या उसके पत्ते तोड़ना वर्जित होता है।
ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ सकती है और जीवन में अशुभ परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इसलिए इस दिन तुलसी की नियमित पूजा करने से बचना चाहिए।
अगर आप धन संबंधी समस्याओं से परेशान हैं, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन कुछ विशेष उपाय करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं-
पीला या लाल धागा लें और उसमें 108 गांठें लगाएं। इस धागे को तुलसी के गमले में धीरे से बांध दें। ध्यान रहे तुलसी को न तोड़ें और न ही उसे सीधे हाथ से स्पर्श करें।
शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं और 7 बार परिक्रमा करें। यह उपाय आर्थिक बाधाओं को दूर करने में सहायक माना गया है।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन आपको तुलसी चालीसा के पाठ व तुलसी माता के मंत्रों का जप करने से लाभ मिल सकता है। इससे साधक को मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद मिलता है।
1. महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
2. तुलसी गायत्री मंत्र -
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
3. तुलसी स्तुति मंत्र -
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
4. तुलसी नामाष्टक मंत्र -
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।