Sheetala Saptami 2021: जोधपुर से व महाकाल पंचांग उज्जैन से निकलने वाले के अलावा अधिकांश में 4 अप्रैल रविवार को शीतला सप्तमी पूजन करने का उल्लेख है। पंचागों में सप्तमी शनिवार को प्रातः 9:52 बजे शुरू होगी, जो रविवार को प्रातः 8:12 बजे तक रहेगी। सूर्योदय के समय सप्तमी तिथि और अष्टमी युक्त होना चाहिए। इसलिए शीतला सप्तमी पूजा रविवार 4 अप्रैल को है। किसी ग्रन्थ में ऐसा नही मिलता कि किसी वार विशेष (रविवार) को शीतला पूजन नही किया जाना चाहिए। सभी अपनी कुल परम्परा अनुसार शीतला सप्तमी का पूजन करें, तिथि के भ्रम में नहीं पड़ें। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि 4 अप्रैल के दिन ऐसा सयोग 38 वर्षो के बाद आया है। इस प्रकार शीतला सप्तमी रविवार के दिन मनाई जाएगी। 3 अप्रैल को रात खाना बनेगा और 4 अप्रैल को माता जी की पूजा कर ठंडा भोजन करना है।
शीतला माता की अन्य कथा
यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखती हूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गांव में आई। उन्होंने देखा कि इस गांव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पूजा होती है। माता शीतला गांव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा। जिससे उनके के शरीर में छाले पड़ गये। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता गांव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन (महिला) बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि माता तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।
तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहां आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूं। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हूं। कुम्हारन माता की चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पीछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी। तभी माता ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूं। मैं शीतला देवी हूं। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पूजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।
माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आंसु बहते हुए कहा- हे माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई है। में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाडू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूं। अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।
तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गांव मे स्थापित होकर यही रहें। जिस प्रकार आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाडू से साफ कर दूर किया, ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ करना है। वह आपकी पूजा करने वाली नारि महिला का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये। तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे मैं सब तुझे देती हूं।