हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य या पूजा की शुरुआत शुभ मुहूर्त देखकर की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किये हुए काम सफल ज़रूर होते हैं। वहीं, अगर किसी नए काम को करने से पहले शुभ मुहूर्त को नज़रअंदाज़ किया तो काम पूरे नहीं होते या फिर उसमें कई तरह की बाधाएं आती है। बात करें शास्त्रों की तो जैसे शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त होते हैं वैसे ही एक समय ऐसा भी होता है जिसे अशुभ मुहूर्त माना जाता है। अशुभ मुहूर्त में कोई भी नया काम नहीं किया जाता। इस समय को हम राहूकाल के नाम से जानते हैं राहुकाल को राहुकालम भी कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखाशास्त्री विनोद सोनी पोद्दार जी के अनुसार राहुकाल जगह और तिथि के साथ अलग-अलग होता है। इसका मतलब यह है कि अलग अलग जगह के लिए राहुकाल बदलता रहता है। यह अंतर समयक्षेत्र में अंतर की वजह से होता है। आइये जानते हैं राहूकाल क्या होता है, इसकी गणना कैसे होती है और राहूकाल को लेकर क्या मान्यताएं हैं ....
यह है राहुकाल की गणना
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक आठवें भाग का स्वामी राहु होता है। राहु को असुर और छाया ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर दिन 90 मिनट का समय राहुकाल का समय होता है।
किसी बड़े और शुभकार्य के शुरुआत के समय उस दिन के दिनमान का पूरा मान घंटा मिनट में निकालें उसे आठ बराबर भागों में बांटकर स्थानीय सूर्योदय में जोड़ दें आपको शुद्ध राहुकाल का पता चल जाएगा।
जो भी दिन होगा उस भाग को उस दिन का राहुकाल माने। राहूकाल की इस गणना में सूर्योदय के समय को प्रात: 06:00 (भारतीय समयानुसार) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल 06:00 बजे का माना जाता है।
इस प्रकार मिले 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। राहूकाल को सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है।
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