धर्म डेस्क। हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। यह अवधि अपने पूर्वजों को याद करने, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दौरान तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और परिवार पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
विशेष रूप से गया (बिहार) और फल्गु नदी का पितृ पक्ष में खास महत्व है। मान्यता है कि यहां किया गया पिंडदान पितरों को तुरंत मोक्ष दिलाता है। यही कारण है कि इस समय हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर तर्पण और श्राद्ध करते हैं।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्रीराम वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ गया पहुंचे, तब पितृ पक्ष का समय था। उनके पिता राजा दशरथ पुत्र वियोग में स्वर्ग सिधार चुके थे। उस समय एक ब्राह्मण ने श्राद्ध सामग्री जुटाने का आग्रह किया।
श्रीराम और लक्ष्मण सामग्री लेने गए, लेकिन देर हो गई। तभी ब्राह्मण ने माता सीता से पिंडदान करने का अनुरोध किया। पहले तो वे असमंजस में थीं, लेकिन तभी दिव्य रूप में महाराज दशरथ प्रकट हुए और स्वयं सीता जी से पिंडदान की इच्छा जताई।
माता सीता ने समय की गंभीरता को समझते हुए फल्गु नदी के किनारे बालू से पिंड बनाए और वटवृक्ष, केतकी पुष्प, फल्गु नदी और एक गौ को साक्षी मानकर पिंडदान किया। इस पवित्र कर्म से राजा दशरथ की आत्मा तृप्त हुई और उन्होंने माता सीता को आशीर्वाद दिया।
जब श्रीराम लौटे और यह सुना तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि बिना सामग्री और बिना पुत्र के श्राद्ध कैसे संभव है। तब वटवृक्ष, केतकी पुष्प, नदी और गौ ने सीता जी के पवित्र कार्य की गवाही दी।
गया और फल्गु नदी का पितृ पक्ष में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यहां किया गया श्राद्ध और तर्पण केवल परंपरा ही नहीं बल्कि पूर्वजों के प्रति भक्ति, सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है। माता सीता द्वारा किए गए इस पवित्र श्राद्ध के कारण यह स्थान और भी पूजनीय माना जाता है।