मल्टीमीडिया डेस्क। नवरात्रि में मनोकामना की पूर्ति के लिए विभिन्न साधनाओं का विशेष महत्व है। इस समय की गई उपासना विशेष फलदायी होती है। चैत्र नवरात्रि में मौसम गर्म रहता है इसलिए ब्रह्म मुहूर्त में साधना-उपासना करने से हर बाधा का नाश होता है और सर्व कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। माता गायत्री को जगत माता माना जाता है। वैसे तो मां गायत्री की आराधना कभी भी करने से फलदायी होती है।
मंत्रों में गायत्रीमंत्र को सर्वोत्तम मंत्र माना जाता है। इस मंत्र को वेदों का सार भी माना गया है। इस मंत्र के स्मरण मात्र से पापों का नाश हो जाता है। गायत्री मंत्र के जाप से बड़े से बड़े कष्टों का नाश हो जाता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। गायत्री मंत्र को सभी तरह के दुख-दर्द के निवारण की संजीवनी बूटी माना जाता है।
गायत्री मंत्र का जाप हमेशा मानव को सुख, सुकून और समृद्धि प्रदान करता है, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर की गई गायत्री साधना विशेष फलदायी होती है। शास्त्रों के अनुसार ऋतुओं के संधिकाल इसी समय होते हैं इसलिए मंत्रों को सिद्ध करने के लिए इस समय को सर्वोत्तम माना जाता है।
मान्यताओं के मुताबिक नवरात्रि साधना को दो भागों में बांटा जाता है। जिसमें एक भाग में जप-तप का प्रावधान है तो दूसरी ओर आहार-विहार और संयमित जीवन का विधान है। इन दोनों भागों को मिलाकर ही अनुष्ठान पुरश्चरणों की विशेष साधना संपन्न होती है।
निर्धारित संख्या में जाप से पाएं सर्वसिद्धि
नवरात्रि में एक जप संख्या की निर्धारित मात्रा में जप करने से विशेष लाभ मिलता है। नवरात्रि के अवसर पर 9 दिनों में 24 हजार मंत्रों के जाप का विधान है। इसकी वजह यह है कि गायत्री मंत्र के 24 हजार मंत्रों के जाप को लघु गायत्री अनुष्ठान कहा जाता है। प्रतिदिन 27 माला गायत्री मंत्र का जाप करने से 9 दिनों में 240 माला होती है। यानी नौ दिनों में जपों की संख्या 24 हजार को पार कर जाती है। सामान्यत: दो से ढाई घंटे एक दिन में मंत्र जाप में लगते हैं।
गायत्री मंत्र का जाप तुलसी की माला से करना चाहिए। उपासना के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर पूर्व दिशा में मुख करके कुश या ऊन का आसन बिछाकर बैठे। अपने सामने माता गायत्री का चित्र स्थापित करें। । गाय के घी का दीपक प्रज्वलित कर धूपबत्ती जलाए। धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, फल, फूल, मिठाई, सुपारी माता को समर्पित करें और मंत्र जाप का प्रारंभ करें। जप के पूर्ण होने पर जप का शतांश हवन यानी कुल जप संख्या के सौवें हिस्से के बराबर हवन भी करना चाहिए। साथ ही कन्या भोज का आयोजन करें।
गायत्री मन्त्र एवं भावार्थ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
उपासना में दिनचर्या रहे संयमित
माता गायत्री की उपासना में कुछ नियमों को विशेष पालन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करे। नौ दिनों तक संभव हो तो अन्न का त्यागकर फलाहार करें, जैसे दूध, फल आदि।
इसके अलावा कोशिश करें की अपने काम स्वयं करें। कोमल शैया का त्याग करें। हिंसा के द्वारा बनाए गए सामानों का त्याग करे, जैसे चमड़ा, रेशम, कस्तूरी आदि।