धर्म डेस्क, इंदौर। Devshayani Ekadashi 2024 Vrat Katha: हिंदू धर्म में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखा जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन करने के अलावा व्रत कथा का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी की कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। आइए, जानते हैं कि भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में क्यों चले जाते हैं और इसके पीछे क्या कथा है।
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 जुलाई को रात 8.33 बजे शुरू होगी और 17 जुलाई को रात 9.02 बजे समाप्त होगी। ऐसे में देवशयनी एकादशी का व्रत उदयातिथि के अनुसार 17 जुलाई को रखा जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के पास जाते हैं। इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी ने नारदजी को बताया था कि सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा का शासन था। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी रहती थी, लेकिन नियति को पलटने में देर नहीं लगती है। अचानक, तीन वर्षों तक वर्षा नहीं होने के कारण राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया।
यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि धार्मिक क्रियाएं कोई भी कार्य नहीं हो पा रहे थे। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा मांधाता इस स्थिति से पहले ही परेशान थे और सोचते थे कि न जाने किस पाप के कारण यह आपदा उन पर आई है।
राजा मांधाता अपनी सेना सहित वन की ओर प्रस्थान कर, ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। ऋषिवर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर कहा, महात्मन्, मैं धर्म का पालन पूरी ईमानदारी से करता हूं, लेकिन इसके बावजूद भी पिछले तीन वर्षों से मेरे राज्य में बारिश नहीं हुई है और राज्य में अकाल पड़ा हुआ है।
महर्षि अंगिरा ने कहा कि हे राजन्! सतयुग में छोटे से पाप का भी भयंकर दण्ड मिलता है। आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है, जो इस युग में अनुचित माना गया है। इसी कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं होती। जब तक वह शूद्र तपस्वी जीवित रहेगा, अकाल समाप्त नहीं होगा।
राजा मांधाता ने कहा, "हे भगवान! मेरा मन किसी निर्दोष व्यक्ति को मारने को तैयार नहीं है। कृपया कोई अन्य उपाय बताएं।" महर्षि अंगिरा उन्हें आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में अवश्य वर्षा होने की बात कही। राजा ने राजधानी लौटकर विधि-विधान से पद्मा एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से मूसलाधार वर्षा हुई और राज्य धन-धान्य से भर गया।
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