नईदुनिया न्यूज, आगरा। आगामी 6 जुलाई 2025 को पड़ने वाली देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) के साथ ही चातुर्मास की शुरुआत हो जाएगी, जो कि एक नवंबर को देवोत्थान एकादशी के साथ समाप्त होगी। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और अगले 118 दिनों तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे संस्कारों पर धार्मिक रूप से रोक लग जाती है।
ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रेश कौशिक बताते हैं कि चातुर्मास (Chaturmas 2025 start date) का समय आत्मचिंतन, व्रत, सेवा और साधना का काल होता है। यह काल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है और इसमें चार माह - श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक शामिल होते हैं। इस दौरान भगवान विष्णु के विश्राम करने की मान्यता के चलते शुभ कार्यों का आयोजन वर्जित होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा (Devshayani Ekadashi significance) में रहते हैं, तब भगवान शिव सृष्टि के संचालन का भार संभालते हैं। इस कारण चातुर्मास में शिव उपासना का विशेष महत्व होता है। चार महीने तक मंदिरों और आश्रमों में साधु-संत एक ही स्थान पर ठहर कर ध्यान, उपदेश और प्रवचन करते हैं।
इस वर्ष देवशयनी एकादशी की तिथि 5 जुलाई को शाम 6:58 से शुरू होकर 6 जुलाई की रात 9:14 बजे तक रहेगी। चूंकि उदया तिथि 6 जुलाई को है, इसलिए व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
6 जुलाई के बाद चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे, केवल अबूझ मुहूर्त को छोड़कर। इस वर्ष केवल 12 दिन ही विवाह योग्य शुभ मुहूर्त बचे हैं-
ज्योतिषाचार्य यशोवर्धन पाठक के अनुसार चातुर्मास में किया गया व्रत, दान और पूजा अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यह आत्मशुद्धि का काल है और साधना की दृष्टि से श्रेष्ठ समय है। चातुर्मास हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में समान रूप से पवित्र माना जाता है।
कमला नगर स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर (इस्कान) में 6 जुलाई को विशेष आयोजन होगा। भगवान जगन्नाथ इस दिन सोने के आभूषणों से सजेंगे, जिसे ‘सोनावेश दर्शन’ कहा जाता है। मंदिर के अध्यक्ष अरविंद स्वरूप प्रभु ने बताया कि इस दौरान विशेष पूजा और आरती भी होगी।
इसके अलावा, 7 जुलाई को आधार पर्ण अर्पण का आयोजन होगा, जिसमें भगवान को अर्पित प्रसाद श्मशान में भेजा जाएगा ताकि भूत-प्रेत और पितृगण भी उस प्रसाद को प्राप्त कर सकें।