Diwali 2021 Goddess Alakshmi । अक्सर हम देखते है कि दीपावली हर साल देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी को धन, वैभव और सुख संपदा देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवी लक्ष्मी के एक बड़ी बहन भी, जिन्हें ‘अलक्ष्मी’ की नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन ‘देवी अलक्ष्मी’ को दुर्भाग्य के देवी माना जाता है और यही कारण है कि ‘देवी अलक्ष्मी’ की पूजा कभी नहीं की जाती है।
कभी साथ नहीं रहती देवी लक्ष्मी और ‘देवी अलक्ष्मी’
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक अलक्ष्मी देवी देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन हैं। उनका अवतार भी समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। ये दोनों देवियां कभी भी साथ में नहीं रहती है। जहां दरिद्रता, दुख और गंदगी है, वहां अलक्ष्मी का वास है। नरक चतुर्दशी के दिन जब घर की साफ-सफाई आदि होती है तो अलक्ष्मी घर से निकल जाती है। इसके बाद ही घर में देवी लक्ष्मी का आगमन होता है।
दुर्भाग्य की देवी हैं मां अलक्ष्मी
समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी ने अवतार लिया था, लेकिन देवी लक्ष्मी से पहले ‘देवी अलक्ष्मी’ ने अवतार लिया था। समुद्र मंथन के समय ‘देवी अलक्ष्मी’ का जन्म कालकुट के बाद हुआ था। उनका रूप देवी लक्ष्मी के बिल्कुल विपरीत था। यही कारण है कि ‘देवी अलक्ष्मी’ को दुर्भाग्य की देवी माना जाता है, इसलिए माता अलक्ष्मी का चित्र नहीं लगाया जाता है।
बूढ़ी औरत के समान दिखती है ‘देवी अलक्ष्मी’
माता अलक्ष्मी जब समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थी तो एक बूढ़ी औरत के समान दिखती थी, उनके बाल पीले थे, उसकी आँखें लाल थीं और उसका चेहरा काला था। समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को चुना जबकि माता अलक्ष्मी ने राक्षसी शक्तियों का आश्रय लिया, इसलिए ‘देवी अलक्ष्मी’ गिनती रत्नों में नहीं की जाती है। उनके प्रकट होने के समय, देवताओं ने कहा था कि जिस घर में कलह होगी, गंदगी होगा और दरिद्रता रहेगी, वहीं पर ‘देवी अलक्ष्मी’ का वास होगा।
‘देवी अलक्ष्मी’ की शादी को लेकर धार्मिक मान्यता
लिंग पुराण में बताया गया है कि ‘देवी अलक्ष्मी’ का विवाह दुसाह नाम के एक ब्राह्मण से हुआ था और पाताल लोक जाने के बाद वह यहां अकेली रह गई थी। बाद में ‘देवी अलक्ष्मी’ एक पीपल के नीचे रहने लगी। मान्यता है कि शनिवार के दिन माता लक्ष्मी अपनी बड़ी बहन ‘देवी अलक्ष्मी’ से मिलने आती हैं। इसलिए शनिवार के दिन पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है, ऐसा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि ‘देवी अलक्ष्मी’ का विवाह उद्दालक नामक महर्षि से हुआ था, लेकिन जब महर्षि उन्हें आश्रम ले गए तो माता अलक्ष्मी ने प्रवेश करने से मना कर दिया क्योंकि वहां बहुत साफ-सफाई थी। ‘देवी अलक्ष्मी’ ने ऋषि उद्दालक से कहा था कि वह केवल ऐसे घरों में रह सकती है, जहां गंदगी, कलह, अधर्म हो। यही कारण है कि ‘देवी अलक्ष्मी’ अपने पति ऋषि उद्दालक के साथ कभी भी नहीं रही।
भूलकर भी न करें ‘देवी अलक्ष्मी’ की पूजा
- जिन घरों में धन हानि होती है, कलह होती है, वहां मां अलक्ष्मी का प्रभाव होता है। इसलिए ‘देवी अलक्ष्मी’ के असर से बचना चाहते हैं तो घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- कबाड़, टूटे शीशे या धातु के बर्तन, किसी भी प्रकार के टूटे हुए सजावटी सामान, अनुपयोगी फर्नीचर आदि को नरक के समान माना जाता है। छोटी दिवाली ऐसे किसी भी प्रकार के कबाड़ सामान को घर से निकाल देना चाहिए।