नईदुनिया न्यूज, गोटेगांव। दीपोत्सव पर्व की तिथि को लेकर पंचांगों में उत्पन्न हो रहे भ्रम की स्थिति को देखते हुए धर्मशास्त्रीय व्यवस्था के अनुसार आचार्य पंडित सोहन शास्त्री ने समस्त सनातनियों से 20 अक्टूबर (सोमवार) को ही दीपावली महापर्व मनाने का आग्रह किया है। परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर के आचार्य पंडित सोहन शास्त्री ने काशी के हृषिकेश पंचांग का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि 20 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि दिन के 2 बजकर 55 मिनट तक है, जिसके पश्चात अमावस्या तिथि का आरंभ हो रहा है। यह अमावस्या तिथि अगले दिन 21 अक्टूबर (मंगलवार) को दिन के 4 बजकर 26 मिनट तक रहेगी।
आचार्य शास्त्री ने तर्क दिया कि 21 अक्टूबर को एक घटी भी अमावस्या प्रदोष काल में व्याप्त नहीं है, जबकि प्रदोष व्यापिनी अमावस्या 20 अक्टूबर को ही प्राप्त हो रही है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल में अमावस्या का होना ही दीपावली (दीपमालिका महापर्व) के लिए श्रेयस्कर और आवश्यक है। उन्होंने आगे बताया कि 21 अक्टूबर को तीन प्रहर से अधिक अमावस्या और साढ़े तीन प्रहर से अधिक वृद्धि गामिनी प्रतिपदा होने के बावजूद, उक्त व्रत के पारणा का काल प्राप्त नहीं हो रहा है, जो कि दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का एक आवश्यक अंग है।
आचार्य शास्त्री ने शास्त्रों में वर्णित तीन रात्रियों का महत्व बतलाया, कालरात्रि (दीपावली), महारात्रि (शिवरात्रि) और मोहरात्रि (श्री कृष्ण जन्माष्टमी)। उन्होंने कहा कि दीपावली में माता लक्ष्मी का पूजन रात्रिकाल में ही किया जाता है, इसलिए इसे कालरात्रि भी कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है वह रात्रि जो स्वयं काल (मृत्यु) को भी ग्रस ले। आध्यात्मिक रूप से यह अज्ञान और मृत्यु के अंधकार को समाप्त करती है। आचार्य शास्त्री ने प्रश्न उठाया कि जब 21 अक्टूबर को रात्रिकाल में अमावस्या ही नहीं होगी, तो पूजन करने का क्या लाभ होगा।
निर्णय सिंधु और दिवोदासीय जैसे धर्मग्रंथों का उद्धरण देते हुए आचार्य पंडित सोहन शास्त्री ने कहा कि सभी धर्म ग्रंथों और शास्त्रीय सिद्धांतों का अनुशीलन करने पर यह सिद्ध होता है कि 20 अक्टूबर, सोमवार को ही दीपावली पर्व अलक्ष्मी की निवृत्ति और लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।