
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। हर साल दीपावली पांच दिनों तक मनाई जाती है, लेकिन इस बार पंचांग की तिथियों में बदलाव के कारण यह उत्सव छह दिनों तक चलेगा। 18 अक्टूबर से शुरू होकर 23 अक्टूबर तक हर दिन का अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। आइए जानते हैं इन छह दिनों का पूरा क्रम और अर्थ।
दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होगी। इस दिन सोना, चांदी, बर्तन और वाहन खरीदना शुभ माना जाता है।
भगवान धन्वंतरि की पूजा करके स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि की कामना की जाती है। शाम के दीपदान से दीपोत्सव का शुभारंभ होता है।
यह दिन दीपोत्सव का सबसे पवित्र पर्व है। घरों में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
दीप जलाकर अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश दिया जाता है। इस दिन घर मिठाइयों, रोशनी और खुशियों से भर जाते हैं।
पूरे दिन अमावस्या तिथि रहने से पारंपरिक रूप से पूजा नहीं की जाती।
इसी कारण गोवर्धन पूजा अगले दिन की जाएगी।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। घरों में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है और प्रकृति, अन्न तथा भगवान के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
दीपोत्सव का अंतिम दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है।
बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि भाई बहनों को स्नेह और आशीर्वाद देते हैं।
दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन के अंधकार में भी आशा और सकारात्मकता की लौ जलाए रखें। दीपों की यह रौशनी घर ही नहीं, दिलों को भी रोशन करती है।
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