डॉ. निखिलेश शास्त्री
भारतीय सनातन परंपरा में भगवान सूर्यनारायण अति दैदिप्यमान और तेजस्वी देवता माने गए हैं। वे एक ज्वलंत अग्नि के पिंड हैं और प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं जो साक्षात दिखाई देते हैं। सूर्यदेव अपने तेज और ओज से संपूर्ण जगत को आलोकित करते हैं और उनके उदय होते ही सभी प्राणी चैतन्य हो जाते हैं। सूर्य देव में अलौकिक शक्ति है इसीलिए वे उपास्य देवता हैं।
इसी आस्था से वेद, श्रुति, स्मृति, पुराणों में सूर्य देवता की उपासना का विस्तृत वर्णन है। वैदिक ऋषियों की मान्यता है कि सूर्य की उपासना से दीर्घायु, आरोग्य, सुख-शांति, धन-धान्य, एश्वर्य, यशो-कीर्ति की तो प्राप्ति होती ही है साथ ही स्वर्ग का शाश्वत सुख भी प्राप्त होता है।
सूर्यदेव शीघ्र फलदायी और पुण्यदायी हैं। वैदिक ऋषि सूर्य से प्रार्थना करते हैं कि 'आप हमारी बुराइयों और पापों को दूर करें, नष्ट करें और हमारे लिए जो कल्याणकारी और मंगलमय हो, वह हमें प्राप्त कराएं।"
वेदों की तरह कई पुराणों में भी सूर्य की उपासना का महत्व बताया गया है। पुराणों में सुवर्ण वर्ण के सूर्यदेव को सात हरे घोड़ों से संयुक्त एक पहिए वाले सुवर्ण रथ पर विराजमान बताया गया है।
सूर्यदेव की कृपा प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना के कई प्रकार बतलाए हैं, जिनमें अनादि से शुद्ध होकर तांबे के पात्र में लालफूल से युक्त जल सूर्य को चढ़ाना, जिसे सूर्य को अर्घ्य देना कहते हैं। हर दिन सूर्य उपासना करने से मनुष्य सभी रोगों से मुक्त होकर मन चाहे भोगों का भोग करते हुए परमगति को प्राप्त करता है।
बारह सूर्य नमस्कार हैं, जिसमें शरीर स्वस्थ बना रहता है और सबसे सशक्त और अति फलदायी सूर्य की उपासना है गायत्री मंत्र का जाप। गायत्री मंत्र के देवता सूर्यनारायण हैं और आश्वलायन गृह्य सूत्र में बतालाया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों वर्णों के गृहस्थों को गायत्री जप अवश्य करना चाहिए, क्योंकि गायत्री जप से दीर्घायु, प्राणशक्ति, आरोग्य, यशकीर्ति, विपुल धन-प्राप्ति आत्मबल की प्राप्ति भूतबाधा से शांति बुद्धि की वृद्धि तथा पापों का नाश होता है। साथ ही गायत्री मंत्र मोक्षदायी भी है (गायत्री निर्वाण पददायिनी)।
ऐसी ही प्रार्थना का उल्लेख यजुर्वेद में है, जिसमें सूर्यदेव से यह कामना की है कि हम सौ शरद ऋतु देखें, सौ वर्ष जिएं और सौ वर्ष तक कभी दरिद्र न हों।
धार्मिक साहित्य में सूर्य महिमा
वेद पुराण के अतिरिक्त रामायण, महाभारत तथा अन्य काव्यों में सूर्य की उपासना से जो सूर्यदेव की कृपा प्राप्त हुई है वह भी भक्तों ने वर्णन की है। जब युद्धक्षेत्र में रावण से युद्ध करते भगवान राम थक चुके थे, फिर भी वे रावण का वध नहीं कर पाए तब अगस्त्य ऋषि ने राम को यह ज्ञान दिया कि आप तीन बार आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करें तभी रावण का वध कर पाएंगे और आपकी विजय होगी। सूर्य देव के स्रोत के पाठ करते ही राम ने रावण का तत्काल वध कर दिया।
इसी तरह महाभारत में उल्लेख है कि कुंती को दुर्वासा ऋषि से वशीकरण मंत्र प्राप्त हुआ था। कुंती ने इस मंत्र की परीक्षा लेने के लिए सूर्य का आह्वान किया। तभी सूर्यदेव प्रकट हो गए और कुंती की उपासना से प्रसन्ना सूर्यदेव ने कुंती को अति वीर योद्धा तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और साथही उस पुत्र को अभेद्य कवच-कुंडल भी दिए। सूर्यदेव की कृपा से कुंती को कर्ण जैसा वीर-पुत्र प्राप्त हुआ।
इसी प्रकार जब सभी पांडव वनवास में भूख-प्यास से पीड़ित जीवन बिता रहे थे तभी युधिष्ठिर ने सूर्यदेव का एक सौ आठ नामों का जप किया। इससे प्रसन्ना सूर्यदेव ने युधिष्ठिर को ऐसा अक्षय पात्र दिया जिसमें रखा भोजन अनंत प्राणियों को खिलाने के बाद भी समाप्त नहीं होता था।
इसी प्रकार महाभारत युद्ध के बीच अर्जुन को कृष्ण ने सूर्य स्रोत का पाठ करने का निर्देश दिया और यह कहा कि यह स्रोत सभी रोगों का शमन करने वाला आयु और धन की वृद्धि करने वाला, शत्रु का नाश और सभी पापों से मुक्त करने वाला है।
उपरोक्त दृष्टांतों से स्पष्ट है कि सूर्य उपासना से दीर्घायु आरोग्य धन-यश तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिस प्राकर सूर्यनारायण अपने उपासकों को लौकिक और पारलौकिक सुख देते हैं।
चिकित्सक सूर्य
सूर्य देवता एक चिकित्सक के रूप में उपासकों को अनेक असाध्य रोगों का निवारण कर उन्हें पूर्ण स्वस्थ भी कर देते हैं। इसीलिए मत्स्य पुराण में कहा है आरोग्य प्राप्ति के लिए भगवान भास्कर की उपासना करें। अथर्ववेद में उल्लेख हैं कि सूर्य की किरणों से क्षय रोग, घुटने, कंधे, मस्तक का दर्द, चर्म रोग सभी दूर हो जाते हैं साथ ही पीलिया और हृदय रोग के लिे सूर्य की किरणें लाभकारी है। ऋग्वेद में ऋषि सूर्यदेवता से यही प्रार्थना करते हैं।
इसी प्रकार सूर्यदेव की उपासना चाक्षुषी विद्या से भी की जाती है, जिसके नित्य पाठ से समस्त नेत्र रोगों का नाश हो जाता है और नेत्र ज्योति की वृद्धि हो जाती है। चाक्षुषोपनिषद में यही उल्लेख है कि सूर्य उपासना नें व्यक्ति के सारे कुल में कोई अंधा नहीं होता है।
सूर्य की उपासना से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को दुर्वासा ऋषि ने कोढ़ का श्राप दे दिया तब श्रीकृष्ण ने साम्ब को सूर्य नारायण की आराधना का निर्देश दिया।
साम्ब के घोर तप-जप से प्रसन्ना सूर्य नारायण साक्षात प्रकट हुए और उनका कोढ़ नष्ट कर साम्ब को दिव्य कांति से युक्त शरीर बना दिया। ऐसी भी किंवदंती है कि मयूर कवि ने 'मयूर-शतक" में एक सौ पद की रचना कर सूर्यदेव की स्तुति की। सूर्य की कृपा से मयूर कवि का कुष्ठ रोग जड़ से नष्ट हो गया।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी यह कहता है कि सूर्य के ताप से शरीर के लिए आवश्यक कैल्शियम, फास्फोरस प्राप्त होता है। साथ ही सूर्य किरणों में निहित विटामिन डी से दांत और हड्डियां सुदृढ़ होती हैं।
सूर्य की किरणों में जो सात रंग हैं, वे भी शरीर को स्वस्थ करते हैं जैसे लाल रंग वात-कफ को, पीला रंग दिमाग-लीवर को, नीला रंग आयु को शक्ति देता है। हरा रंग शीतल होने के कारण घाव-नासूर को ठीक करता है, बैंगनी रंग फेफडों के लिए उपयोगी होता है। इस तरह सूर्य सिर्फ जीवित देवता ही नहीं, चिकित्सक भी हैं।