- पं. सचिन शर्मा
मौन के जरिए हम अपनी वाणी और व्यवहार में संयम ला सकते हैं। मौनी अमावस्या पर स्नान और दान का भी विशेष महत्व है। सौभाग्य प्राप्ति के लिए यह अचूक व्रत है।
मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ पावन दिन बन जाता है।
मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा के योग के कारण ही इस अमावस्या का अत्यधिक महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों में स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन दान करने से अनंत गुना फल प्राप्त होता है। इसी शुभ दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है।
इस दिन मौन व्रत रखने का भी विधान है। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को धारण करके मौन रहने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है और वह भगवान का प्रिय बन जाता है। इस व्रत का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को वश में रखना चाहिए।
अपनी वाणी को संयत करना ही मौन व्रत है। इस अर्थ में देखा जाए तो यह आत्मसंयम और आत्म नियमन का व्रत है। कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं। दिन, सप्ताह, मास और वर्ष के अनुरूप लोग अलग-अलग अवधि का मौन संकल्प धारण करते हैं। मौन से आत्मबल मिलता है। कबीरदास जी कहते हैं- 'वाद विवाद विष घना, बोले बहुत उपाध। मौन रहे सबकी सहे, सुमिरै नाम अगाध।'
ग्राम्य जीवन में तो कहा गया है - 'एक चुप्प सौ को हरावै।' मौनी अमावस्या को स्नानादि से निवृत्त होकर मौन व्रत रख एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए। इससे चित्त की शुद्धि होती है। आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति स्नान तथा जप आदि के बाद हवन, दान आदि कर सकता है।
इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है। माघ मास की अमावस्या और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व है। इस मास में ये दो तिथियां पर्व के समान मानी जाती हैं।
समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों के मध्य संघर्ष में जहां- जहां अमृत गिरा था उन स्थानों पर स्नान करना शुभदायी माना जाता है। इस दिन पितरों के प्रति आभार करने के लिए तर्पण किया जाता है और दान दिया जाता है।
दान का विशेष महत्व
मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को सामर्थ्य अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करना चाहिए। अगर त्रिवेणी संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाना संभव नहीं हो तो घर में ही प्रात: काल उठकर स्नान करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या जलाशय में स्नान करना चाहिए।
पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल हो जाता है। स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें।