राजेश वर्मा, उज्जैन। यूं तो कालों के काल भगवान महाकाल बदन पर भभूत भी मल लें तो परम दर्शनीय हैं, माथे पर त्रिपुंड लगा लें तो परम शोभनीय हैं, बाघंबर धारण कर लें तो परम दिव्य हैं, तीन दलों वाली बेल की एक पत्ती भी उनका परम श्रृंगार है... फिर भी वे तरह-तरह के श्रृंगार कर निराकार से साकार होते हैं। कभी भस्म से, कभी भांग से... कभी पुष्प से, कभी फल से... कभी धन से, कभी धान से...कभी चांद से, कभी चंदन से... कभी राग से, कभी रत्न से सजकर ऐसा संपूर्ण निखार हासिल करते हैं कि नयन अपलक हो जाते हैं। सच तो यह है कि महाकाल काल (समय) की सीमा के परे हैं, लेकिन सावन के महीने में उन पर आस्था के इतने फूल चढ़ते हैं कि उनका सौंदर्य अलौकिक हो जाता है।
दर्शन से अभिभूत होते हैं भक्त
धर्मधरा उज्जयिनी में राजाधिराज भगवान श्री महाकालेश्वर अपने भक्तों को विभिन्ना दिव्य रूपों में दर्शन देते हैं। यहां अनादिकाल से महाकाल के श्रृंगार की अनूठी परंपरा रही है। यह कार्य कुशल कारीगर नहीं, बल्कि राजा के सेवक पुजारी वंशानुसार करते आ रहे हैं। भस्मारती हो या संध्या की स्तुति महाकाल के अद्भुत श्रंगार की झलक पाने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती हैं। तीनों लोकों के राजा का भासंत श्रृंगार श्रद्धालुओं के मन को मोह लेता है।
कब-किस रूप में सजते हैं राजा
- कृष्ण जन्माष्टमी पर राजा कृष्ण रूप में तो गणेश चतुर्थी पर पुत्र गजानन के रूप में दर्शन देते हैं। हनुमान अष्टमी पर हनुमान, नागपंचमी पर शेषनाग और इसी तरह रविवार के दिन आदित्य रूप में भगवान के दर्शन होते हैं।
- इसके अलावा श्रावण मास में प्रतिदिन संध्या आरती में भगवान का भांग से मनमोहक श्रृंगार किया जाता है। इसमें तिरुपति बालाजी, अर्द्धनारीश्वर सहित अन्य रूपों में भगवान को सजाया जाता है।
- शिवरात्रि पर भगवान को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। वर्ष में सिर्फ एक बार इसी दिन भगवान के शीश सवा मन फूलों का सेहरा सजाया जाता है। साथ ही सप्तधान का मुघौटा लगाया जाता है।
पूर्वजों से श्रृंगार की सीख
पुजारी प्रदीप गुरु और पुजारी विजय गुरु बताते हैं कि वंश परंपरा के अनुसार मंदिर में पुजारी पूर्वजों से श्रृंगार का ज्ञान सीखते आ रहे हैं। भगवान निराकार हैं। उन्हें साकार रूप देने के लिए श्रृंगार की परंपरा प्रारंभ की गई।
संध्या आरती में भारी श्रृंगार
पं. विजय पुजारी ने बताया कि संध्या आरती में भगवान का भारी श्रृंगार किया जाता है। इसमें सूखे मेवे, भांग सहित मावे का उपयोग होता है। दिन का श्रृंगार अमूमन हल्का होता है। इसमें चंदन, कंकू, अबीर, गुलाल आदि का उपयोग किया जाता है। वजह यह है कि दिन में निरंतर भगवान को जल चढ़ता है इसलिए आरती के तुरंत बाद हल्का श्रृंगार उतार लिया जाता है। जबकि भारी श्रृंगार संध्या आरती के उपरांत से दूसरे दिन भस्मारती तक रहता है।
तीसरी पीढ़ी कर रही यह काम
पं. विजय पुजारी बताते हैं कि ज्ञात जानकारी अनुसार महाकाल मंदिर में इस समय पुजारियों की तीसरी पीढ़ी भगवान का श्रृंगार कर रही है। इससे पूर्व उनके पिता प्रेमनारायण पुजारी, पं. घनश्याम पुजारी के पिता रामचंद्र पुजारी और चंद्रमोहन पुजारी के बड़े भाई बाबूलाल पुजारी करीब 60 साल तक भगवान का श्रृंगार करते रहे। वर्तमान में नई पीढ़ी यह काम कर रही है।
भक्तों की बुकिंग पर श्रृंगार
श्रावण मास में नियमित रूप से भांग का ही श्रृंगार होता है। शेष दिनों में भक्तों की बुकिंग पर ही श्रृंगार किया जाता है। श्रृंगार में प्रयुक्त भांग प्रसाद रूप में भक्त ले जाते हैं। महाशिवरात्रि पर महानिशा काल में महाकाल के पूजन के बाद ब्रह्ममुहूर्त में भगवान को सवा मन फूल और फल के सेहरे से सजाया जाता है। श्रृंगार उतारने के बाद सेहरे के फूल और फल भक्तों में बांट दिए जाते हैं।