नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। हरिशयनी एकादशी आज मनाई जा रही है, आज का व्रत रखने से श्रद्धालुओं को सहस्त्र गोदान के बराबर फल मिलता है। इसके साथ ही आत्म संयम के पर्व चातुर्मास की शुरुआत भी होगी। इससे आने वाले चार माह तक तप, साधना, उपवास और तीज-त्योहार का उल्लास छाएगा। संतों के सानिध्य में आत्म कल्याण के लिए साधक साधना में जुट जाएंगे।
विद्वानों के मुताबिक इस समय को मांगलिक कार्यों से इतर धर्म-ध्यान और संतों की सेवा के लिए उपयुक्त माना गया है। पंडित रामजीवन दुबे और जगदीश शर्मा ने बताया कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि शनिवार शाम 06:58 मिनट से शुरू हो गई। इसका समापन रविवार को रात 09:14 मिनट पर होगा। उदयातिथि के चलते आज देवशयनी एकादशी का व्रत रखा गया है।
देवशयनी एकादशी का अत्यंत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव, माता पार्वती और अन्य देव शक्तियां संभालते हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि जो भक्त इस एकादशी का व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक करता है। वह पूर्व जन्मों के पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
चातुर्मास के इस आरंभिक पर्व से धार्मिक अनुशासन, भक्ति और तपस्या का विशेष काल प्रारंभ होता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहन लें, इसके बाद पूजा वाली जगह की अच्छी तरह से सफाई कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला प्रसाद और पीला चंदन अर्पित करें।
पंडित विनोद गौतम ने बताया कि एकादशी के अवसर पर श्रद्धालुओं को मंदिरों में जाकर भगवान के दर्शन करने के साथ-साथ ही दान और पुण्य भी करना चाहिए। जिसका अक्षय फल मिलता है। इसके अलावा बड़ी संख्या में भक्तगण घरों और मंदिरों में सत्यनारायण भगवान की कथा कराते हैं। तो वहीं देवशयनी एकादशी का पाठ किया जाता है। इससे भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।