हिंदू शास्त्रों में सभी माह में से कार्तिक मास को श्रेष्ठ और अत्यंत पवित्र माह का दर्जा दिया गया है। इस पूरे माह व्रत, दान-पुण्य, पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व बताया गया हैं यह माह भगवान विष्णु और शिव दोनों को अत्यंत प्रिय है।
शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक माह में व्रत, तप, मंत्र, जप, दान-पुण्य और दीपदान करता है, वह जीवित रहते हुए पृथ्वी पर समस्य सुखों का भोग करता है और मृत्यु के पश्चात उसे बैकुंठ में स्थान मिलता है।
इस साल कार्तिक माह 23 अक्टूबर को शुरू हुआ है और 23 नवंबर तक चलेगा। पुराणों में कहा है कि भगवान नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण संपन्न् माहात्म्य के बारे में बताया था। कार्तिक माह के दौरान श्रद्धालुओं के लिए कई नियमों का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। यदि कोई इनका निष्ठापूर्वक पालन करता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आइए जानते हैं नियमों के बारे में :
तारा स्नान
कार्तिक महीने के सभी दिनों में सूर्योदय से पूर्व और संध्याकाल में स्नान करना बेहद पवित्र माना गया है। इसे तारा स्नान कहा गया है। यानी प्रात: आकाश में तारों की उपस्थिति में स्नान और सायंकाल में आकाशमंडल में तारे उदित होने के बाद भोजन। कार्तिक माह में प्रतिदिन सूर्योदय पूर्व और संध्याकाल में किया गया स्नान एक हजार बार गंगा स्नान के बराबर फल देने वाला माना गया है।
दीपदान
धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
तुलसी पूजा
इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।
भूमि पर शयन
भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।
तेल लगाना वर्जित
कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
दलहन (दालों) खाना निषेध
कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का पालन
कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।
संयम रखें
कार्तिक मास का व्रत करने वालों को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करें अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें आदि।