- हेमंत उपाध्याय
लगभग 2500 वर्ष पहले अहिंसा और सहिष्णुता की शिक्षा देने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जीवन ही उनका संदेश है। भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांत और आदर्श वर्तमान संदर्भों में और सभी के लिए प्रासंगिक हैं। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय आदि अनेक उपदेशों को अपनाकर आज भी रामराज्य की स्थापना की जा सकती है। वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयंती के रुप में मनाया जाता है।
वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान आदिनाथ की परंपरा में चौबीस वें तीर्थंकर हुए थे और उनका जीवन काल 511 से 527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनका जन्म बिहार के कुंडलपुर में हुआ था। महावीर के पिता का नाम राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम रानी त्रिसला था।
उनका जन्म हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था। पावापुर में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान महावीर कठोर तप से अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात विजेता कहलाए। उनका यह कठिन तप पराक्रम के सामन माना गया और इस वजह से उन्हें महावीर कहा गया तथा उनके अनुयायी जैन कहलाए।
जैन धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिभाषित करके जैन दर्शन को स्थायी आधार दिया। उन्होंने श्रद्धा एवं विश्वास के जरिए जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की । इसीलिए आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी को दिया जाता है।
महावीर स्वामी को अर्हत, जिन, निग्रर्थ, अतिवीर आदि नामों से भी जाना जाता है। उन्होंने लोगों को जिओ और जीने दो के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने घोर तपस्या से अपनी इंद्रियों पर विजय हासिल की ली थी। इस पर्व को तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व भी कहा जाता है।
भगवान महावीर के समय में समाज व धर्म में अनेक विषमताएं थी। ऐसे में उन्होंने आडंबरों से घिरे धर्म और अत्याचार से पीड़ित समाज को नवजीवन दिया। उन्होंने कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने के साथ धर्म की वास्तविकता को स्थापित कर सत्य एवं अहिंसा पर बल दिया। भगवान महावीर के सिद्धांतों में अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह, आत्म स्वातंत्र्य शामिल है।
उपदेशों से समाज कल्याण
महावीर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समाज का कल्याण किया। उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, अहिंसा को अपनाओ, जिओ और जीने दो।
इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तथा छ: आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया। जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए उन्होंने लोक कल्याण का मार्ग अपने आचार-विचार में लाकर धर्म प्रचारक का कार्य किया।