सनावद। गणेश मंदिर में गणेशोत्सव के चलते भक्तों का तांता लग रहा है। 300 साल पुराने इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति आस्था का केंद्र है। ओंकारेश्वर रोड स्थित इस मंदिरों के बारे में जानकारों का कहना है कि पहले इस स्थान पर वीरान जंगल था।
भगवान गणेश की मूर्ति हवा में उड़कर आई थी। बाद में इस मूर्ति को पेड़ के नीचे विराजित किया गया। पंडित राजेंद्र व्यास ने बताया कि वर्षों से वे भगवान की सेवा कर रहे हैं। मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई मन्नत अवश्यक पूरी होती है।
गणेशोत्सव के पहले दिन भगवान गणेश को 51 किलो लड्डू का भोग लगाया गया। 11 किलो मोदक भी प्रसादी के रूप में बांटा गया। भगवान का एक हजार दूर्वा, गाय के दूध से महाभिषेक किया गया। साथ ही गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी हुआ।
फलदायी हैं गोबर से बनी गणेश की मूर्ति
महेश्वर में महावीर मार्ग स्थित गोबर गणेश मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। किंवदंती के अनुसार यहां स्थापित मूर्ति गोबर से निर्मित है। पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गोबर गणेश मंदिर अपनी पृथक विशेषता के कारण श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
मंदिर के पुजारी पं. मंगेश जोशी ने बताया कि यहां की मूर्ति वर्षों पुरानी है। यह मूर्ति गोबर से निर्मित है। पं. जोशी का कहना है कि नारद पुराण में वर्णन आता है कि गोबर में लक्ष्मी का वास होने से यहां के गणेशजी की उपासना अनंत फलदायी है।
'महोमूला धारे इस प्रमाण से प्रकृति के मूलाधार भूतत्व रूप में गणेशजी सर्व पूजित हैं। भाद्रपद चतुर्थी के पूजन के लिए हमारे पूर्वज गोबर व मिट्टी से ही गणपति का बिंब बनाते थे। मंदिर में गणेशोत्सव सहित अन्य पर्वों पर कन्याभोज, यज्ञ, पूजन व धार्मिक आयोजन होते हैं।