Mahabharat: पौराणिक ग्रंथ महाभारत में धर्म के लिए लड़ गए युद्ध का वर्णन किया गया है। इसमें अधर्म पर धर्म की विजय के लिए सभी तरह के वीरोचित्त कार्यों के साथ छल-कपट का भी सहारा लिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण इस महाग्रंथ के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। जिन्होंने युद्ध को टालने की हरसंभव कोशिश करने के बावजूद युद्ध में हिस्सा लिया और बगैर हथियार उठाए पांडवों का रणभूमि में मार्गदर्शन किया।
अभिमन्यु को गर्भ में मिला था चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान
महाभारत में अर्जुन, युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन, दुशासन, पितामह भीष्म, कर्ण, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, द्रौपदी, कुंती, गांधारी, गांधार नरेश शकुनि जैसे अनगिनत पात्र थे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ये सभी लोग देव और दानवों के अंश लेकर धरती पर अवतरित हुए थे। महाभारत का एक ऐसा ही महावीर और परम प्रतापी योद्धा था अभिमन्यु। मान्यता है कि अभिमन्यु को अपनी मां के गर्भ से भी चक्रव्यूह जैसी अभेद रचना का ज्ञान हो गया था। जब अभिमन्यु गर्भ में था उस वक्त पिता अर्जुन ने उनकी माता को चक्रव्यूह के भेदन का ज्ञान दिया था, लेकिन उससे निकलने का ज्ञान वह नहीं दे पाए थे।
चंद्रमा के पुत्र वर्चा के अंश थे अभिमन्यु
अभिमन्यु के जन्म की भी एक विचित्र कथा है। कौरव और पांडव सभी देव-दावनों के अंश थे। अभिमन्यु चंद्रमा के पुत्र वर्चा धरती पर अभिमन्यु के रूप में अवतरित हुए थे। वर्चा के जन्म के समय चंद्रमा ने कहा था कि वह अपने प्रिय पु्त्र को भेजना नहीं चाहते हैं, लेकिन इस काम से पीछे हटना उचित नहीं जान पड़ता है। असुरों का वध करना भी तो अपना ही काम है इसलिए मेरा पुत्र वर्चा मनुष्य बनेगा जरूर, लेकिन ज्यादा समय तक वहां पर रहेगा नहीं। इंद्र के अंश से नरावतार अर्जुन होगा, जो नारायणवतार श्रीकृष्ण से मित्रता करेगा और मेरा पुत्र अर्जुन का ही पुत्र होगा।
चंद्रमा ने रखी थी यह शर्त
रणभूमि में नर और नारायण के उपस्थित न रहने पर मेरा पुत्र चक्रव्यूह का भेदन करेगा और घमासान युद्ध कर रणभूमि के योद्धाओं को चकित कर देगा। दिनभर युद्ध करने के बाद वह वीरगति को प्राप्त होगा और शाम को मुझसे आ मिलेगा। इसकी पत्नी से जो पुत्र होगा वह कुरु कुल को आगे बढ़ाएगा। इस समय सभी देवताओं ने चंद्रमा के कथन का अनुमोदन किया। इस तरह अभिमन्यु का धरती पर अवतरण कुरु राजवंश को आगे बढ़ाने के लिए हुआ था।